Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 53

background image
: ८ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
थती नथी; एटले शरीरनी हीनाधिकताथी ते पोतानी हीनाधिकता मानतो नथी,
शरीरमां रोग–निरोगथी ते पोताने रोगी–निरोगी मानतो नथी, शरीरना छेदन–
भेदनथी ते पोतानुं छेदन–भेदन मानतो नथी, शरीरना नाशथी ते आत्मानो नाश
मानतो नथी; ए तो भिन्न आत्माने ध्येय बनावे छे. हुं तो ज्ञान छुं, हुं तो आनंद छुं–
एम निजस्वरूपने ते ध्यानमां उपादेय करे छे, ए सिवायना परभावने अंशमात्र
पोतामां ग्रहता नथी.
जुओ, कोई मुनि होय, शरीरने सिंह–वाघ आवीने तोडता होय, कटका करीने
खाता होय, ने ते वखते मुनि तो अंतरमां शुद्धात्माने ध्येय बनावीने अंतरमां लीन थाय
ने एवी धारा ऊपडी जाय के क्षपकश्रेणी मांडीने केवळज्ञान ल्ये, ज्यां केवळज्ञान थाय त्यां
शरीर पण सरखुं थई जाय, ने उत्तम–परम औदारिक शरीर बनी जाय. एवो मेळ छे,
छतां ते शरीर पण एमनुं नथी. ए शरीर पण नाशवंत छे, पण ते शरीरना नाशथी
आत्मानो नाश थतो नथी. आत्मा तो शरीररहित सिद्धपणे सादिअनंत बिराजे छे.
अत्यारे संसार अवस्था वखतेय आत्मा शरीर रहित ज छे. शरीररूपे आत्मा
कदी थयो नथी. अंदर अमृतनो समुद्र भरेलो छे; ए तो ज्ञानशरीरी छे, ज्ञान ज एनो
देह छे. असंख्यप्रदेश ज्ञान–आनंदमय छे, आवा आत्माने धर्मी ध्येय बनावे छे; त्यां
शरीरमां छेदन–भेदन थाय तेनो भय तेने रहेतो नथी, एटले अभिप्रायमां एने एम
नथी थतुं के आ शरीर छेदातां मारो आत्मा छेदाई गयो! के आ शरीर भेदातां मारूं
ज्ञान भेदाई गयुं! हुं ज्ञान छुं ने जगतना बधा आत्मा ज्ञान छे; एटले बीजा जीवोने
पण ते संयोगवडे नाना–मोटा कल्पतो नथी. अज्ञानी पोते संयोगथी पोतानी मोटाई
माने छे ने पोतानी एवा द्रष्टिने लीधे बीजा जीवोनुं माप पण संयोग उपरथी देखे छे.
भाई, आत्मामां संयोग नथी ने ए संयोगोमां आत्मा नथी. आत्मा अनंत गुणनो
पिंड, एना गुणनी शुद्धतानी जेने वृद्धि थई ते मोटो, ने ते शुद्धतानी जेटली ओछाप
एटलो नानो; संयोग ओछा माटे आत्मा नानो के संयोग वधु माटे आत्मा मोटो–एम
संयोगथी आत्मानुं माप नथी. ने स्वभावथी तो बधा आत्मा ज्ञानानंदे भरपूर
भगवान छे. संयोगनुं लक्ष छोडीने आवा स्वभावमां लक्षने स्थिर कर, तेना ध्यान वडे
परम आनंद अनुभवाशे.
तुं शरीरनी द्रष्टि छोडीने आत्मानी द्रष्टि कर तो तने प्रतीत थशे के शरीरना टूकडा
थतां मारा टूकडा थता नथी. तुं भय न पाम के शरीरनुं छेदन थतां हुं छेदाई जईश?
असंख्य प्रदेशी अखंड आत्माना एक प्रदेशने पण कोई तोडी शके नहीं; तेमज अनंत
गुणना पिंडमांथी एक्केय गुणने कोई भेदीने जुदो पाडी शके नहीं. आवो ज्ञानानंद