Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
वि वि ध व च ना मृ त
(आत्मधर्मनो चालु विभाग: लेखांक : १६)
(२२१) भेदज्ञान
जेम स्वद्रव्यमां एकाग्रताथी मारी निर्मळपर्याय खीले छे, तेम रागमां
एकाग्रताथी मारी निर्मळपर्याय खीलती नथी, माटे स्वद्रव्य अने राग बंने चीज जुदी–
जुदी छे.
स्वद्रव्यमां उपयोगथी जे आनंदवेदन थाय छे, रागमां उपयोगथी ते आनंदवेदन
थतुं नथी, माटे मारुं स्वद्रव्य ज आनंदनुं धाम छे. आवा स्वसंवेदनमय भेदज्ञान धर्मीने
होय छे.
(२२२) चैतन्यनुं घोलन
चैतन्यनुं परम शांत परिणामथी घोलन ते ज कषायोने जीतवानो उपाय छे.
चैतन्यना घोलनमां कषायनी उद्भूति क््यांथी थाय? त्यां तो परिणाम शांत–
शांत ज थता जाय.
कषायोनो आवेश त्यां चैतन्यनुं घोलन नहि, चैतन्यरसनुं घोलन त्यां कषायोनो
आवेश नहि.
(२२३) आनुं नाम ज्ञान!
स्वभाव अने रागनी संधीने तोडनारूं ज्ञान घणुं ज सूक्ष्म छे–रागनी स्थूळताथी
पार, तीखुं छे. ते ज्ञान पोतानी अति उग्र ताकातथी अत्यंत ऊंडो घा करीने सर्व
विभावोने भेदीने ज्ञानस्वरूपमां प्रवेशी जाय छे; ज्ञानमां तन्मयपणे ते स्वयं परम
आनंदरूप बनी जाय छे. आनुं नाम ज्ञान.....ने आनुं नाम पुरुषार्थ!
(२२४) जेवुं द्रव्य....तेवी पर्याय
जेम द्रव्यनो महिमा ज्ञान–आनंदस्वरूप भावथी छे, रागथी तेनो महिमा नथी,
तेम पर्यायनो महिमा पण ज्ञान आनंदस्वभावथी छे, रागथी तेनो महिमा नथी.
जे पर्याय रागना महिमामां अटकशे ते पर्याय ज्ञानआनंदरूप नहि थई शके.
ज्ञानआनंदरूप थयेली पर्याय रागथी जुदी छे. स्वभावना महिमा तरफ जे
पर्याय वळशे ते ज्ञानआनंदरूप थशे.