Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
बहार रहीने ज जाणे छे, ने ते ज्ञेयो तो ज्ञानथी बहार ज रहे छे, ज्ञान ने ज्ञेय एक
बीजामां प्रवेशी जता नथी, छतां अज्ञानी निज ज्ञानने भूलीने खेदखिन्न थाय छे. स्व–
पर प्रकाशक सामर्थ्य ते तो ज्ञाननी निर्मळता छे, एने जाणे तो आत्माने जाण्यो
कहेवाय. स्वपरप्रकाशक ज्ञान रागने जाणतां रागरूप पोते थई गयुं नथी, पोते तो
ज्ञानपणे ज रह्युं छे. आवा ज्ञाननी प्रतीत ते वस्तु स्वभावनी प्रतीत छे.
अहो, ज्ञानस्वभावी महिमावंत पदार्थ–जेना लक्षे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रादि
कार्य थयुं, तेनी साथे ज्ञानमां रागादि अशुद्धता जणाय छतां तेमां ज्ञानना ज सामर्थ्यनी
प्रसिद्धि छे.
विकारी परिणाम पण द्रव्यना परिणाम, ने आत्मा तेनो कर्ता, बीजो कर्ता नहि
एम पहेलां कह्युं, अहीं कहे छे के ते विकारी परिणामने जाणवानी ताकात ज्ञानमां छे, ते
ज्ञानना स्वपर प्रकाशकपणामां आनंदनुं वेदन छे. तेमां दुःखनुं ज्ञान भले हो, पण तेने
ते दुःखनुं वेदन नथी.
अरे जीव! ज्ञानने भूलीने खेद कां पाम! ज्ञानमां खेद केवो? संयोग प्रतिकूळ
आव्यो ते कांईतारे दुःखी थवानुं कारण नथी, एने तो जाणी लेवानो स्वपर–प्रकाशक
ज्ञाननो स्वभाव छे. ते ज्ञानमां कांई आकूळता के खेद नथी. साधकपणामां राग पण छे.
ने ज्ञान तेने जाणे छे. त्यां कांई रागने जाणतां साधकना ज्ञानमां मलिनता थई जती
नथी, पण मिथ्याश्रद्धाने लीधे, ज्ञेयोमां ज मग्न थयेलो अज्ञानी जीव, ज्ञानने भूलीने
खेदखिन्न थाय छे. वस्तुस्वरूपने जाणे तो एवो खेद रहे नहि, ने स्व–परप्रकाशी ज्ञाननी
प्रतीत साथे आनंद प्रगटे. निर्दोष ज्ञानने तुं दोषवाळुं न मान. परने जाणता कांई
ज्ञानमां खेद नथी. ज्ञाननी प्रतीतने भूलीने ज्ञेयमां तन्मयता माने तो तेमां मिथ्यात्वनो
खेद छे. ए खेद टाळवा माटे स्व–परप्रकाशक ज्ञानने अनुभवमां ले, तो खेद टळे ने
अपूर्व आनंद प्रगटे. ज्ञाननी प्रतीत वगर कोई रीते समता के आनंद प्रगटे नहि.
ज्ञान ते आत्मानुं तत्त्व छे, ने रागादि ते आस्रवतत्त्वनो भाग छे. तेमां
आस्रवनी मलिनताने जाणतां ज्ञान मेलुं थई जतुं नथी.
एक कोर ज्ञाननो भाग, बीजी कोर रागनो भाग तेमांथी ज्ञाननो भाग सारो छे,
ने सारो ते तारो छे. एम रागथी भिन्न ज्ञानने ग्रहण करवुं ते सुखी थवानो रस्तो छे.
अरे जीव! जाणवानो तो तारा ज्ञाननो स्वभाव छे, तो पछी परज्ञेय जणातां तुं
तारा ज्ञानथी केम च्युत थाय छे?–स्वपरने जाणे ते तो ज्ञानना शुद्ध स्वभावनो उदय