Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
बावीश वर्ष पहेलां
सोनगढमां वीर सं. २४७१ ना वैशाख मासमां (एटले के आजथी
२२ वर्ष पहेलां) उनाळानी रजा दरमियान शिक्षणवर्गमां अभ्यास करता
विद्यार्थीओए अंदरोअंदर करेला एक दिवसना प्रश्नोत्तरनो केटलोक भाग.
१. प्रश्न:– जीव अने द्रव्यमां शुं फेर?
उत्तर:– जीव कहेतां एकलुं जीवद्रव्य ख्यालमां आवे छे. अने द्रव्य कहेतां छए
द्रव्यो ख्यालमां आवे छे.
२. प्रश्न:– मोक्ष सुख क््यां होय? अहीं ते भोगवी शकाय के नहि?
उत्तर:– मोक्षसुख आत्मानी शुद्ध पर्यायमां होय छे. अने आत्मामां ते भोगवी
शकाय छे; मोक्षसुखनो संबंध बहारना क्षेत्र साथे नथी.
३. प्रश्न:– प्रतिजीवी गुण अने अनुभवी गुण एटले शुं?
उत्तर:– वस्तुनो जे गुण बीजाना अभावनी अपेक्षा राखे तेने अर्थात्
अभावसूचक गुणने प्रतिजीवी गुण कहे छे अने जे गुण बीजानी अपेक्षा न राखे तेने
अर्थात् भावसूचक गुणने अनुभवी गुण कहे छे.
४ प्रश्न:– एकेन्द्रिय अने निगोदमां शुं फेर?
उत्तर:– निगोदना बधा जीवोने एकेन्द्रिय कहेवाय पण बधा एकेन्द्रियने निगोद
न कहेवाय.
प. प्रश्न:– छ द्रव्योमांथी खंड द्रव्य केटलां छे?
उत्तर:– छए द्रव्यो पोताना स्वरूपे अखंड छे, अने परथी जुदा छे. परमाणुना
स्कंधने खंडरूप कही शकाय, केमके ते स्कंधमांथी परमाणुओ छूटा पडी जाय छे.
६. प्रश्न:– रूपी, अरूपी, मूर्तिक, अमूर्तिक एमांथी जीवने क्या क्या विशेषणो
लागु पडे छे?
उत्तर:– जीव अरूपी अने अमूर्तिक छे. जड वस्तुनुं रूप जीवमां नथी तेथी अरूपी
कहेवाय छे पण पोताना ज्ञान वगेरेनी अपेक्षाए तो ते स्व–रूपी छे, जीवनमां पोतानुं
रूप छे. ज्ञान दर्शन, वगेरे जीवनुं स्वरूप छे.
७ प्रश्न:– बाह्यक्रिया अने अभ्यंतर क्रिया एटले शुं?
उत्तर:– खरेखर ज्ञाननी शुद्ध पर्याय ते आत्मानी अभ्यंतर क्रिया छे अने राग
ते बाह्यक्रिया छे; अने उपचारथी राग ते अभ्यंतर क्रिया तथा शरीरादिनी क्रिया ते
बाह्यक्रिया छे.