: चैत्र : २४९२ आत्मधर्म : १९ :
उत्तर:– अस्तिकाय ते अनेक प्रदेशवाळुं द्रव्य छे. जे द्रव्य अनेक प्रदेशवाळुं होय
तेने अस्तिकाय कहेवाय छे.
२८ प्रश्न:– वेदनीय कर्मना नाशथी क््यो गुण प्रगटे छे? ते अनुजीवी छे के
प्रतिजीवी?
उत्तर:– अव्याबाध गुण प्रगटे छे, ते प्रतिजीवी गुण छे.
२९ प्रश्न:– अभयत्व ते अनुजीवी छे के प्रतिजीवी?
उत्तर:– अभयत्व ते अनुजीवी छे, केमके ते कोई परना अभावनी अपेक्षा
राखतुं नथी.
३० प्रश्न:– कोई त्यागी होय पण मिथ्याद्रष्टि होय तेने वधारे पाप के लडाईमां
उभेला सम्यग्द्रष्टि चक्रवर्तीने वधारे पाप?
उत्तर:– मिथ्याद्रष्टिने मिथ्यात्वनुं अनंत पाप क्षणे क्षणे लागे छे अने
सम्यग्द्रष्टिने लडाई वखते पण ते अनंत पाप तो टळी ज गयुं छे तेथी ते बेमांथी
मिथ्याद्रष्टिने ज वधारे पाप छे. मिथ्याद्रष्टिने साचुं मुनिपणुं होय नहि.
(बाकीनो भाग आवता अंके)
हे जीव! त्रण लोकमां सौथी उत्तम महिमावंत पोतानो
आत्मा छे. तेने तुं उपादेय जाण; ए महा सुंदर ने सुखरूप छे.
जगतमां सर्वोत्कृष्ट एवा आत्माने तुं स्वानुभवगम्य कर.
तारो आत्मा ज तने आनंदरूप छे, कोई परवस्तु तने
आनंदरूप नथी. आत्मानो आनंद जेणे अनुभव्यो छे ते
धर्मात्मानुं चित्त बीजे क््यांय ठरतुं नथी, फरी फरीने आत्मा
तरफ ज वळे छे. आत्मानुं अस्तित्व जेमां नथी, आत्मानुं
जीवन जेमां नथी एवा पर द्रव्योमां धर्मीनुं चित्त केम चोंटे?
आनंदनो समुद्र ज्यां देख्यो छे त्यां ज तेनुं चित्त चोंटयुं छे.