Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
अशुद्धताने टाळवानो
साचो उपाय
(समयसार कलशटीका–प्रवचन २१८–२१९–२२०)
* * *
शुद्ध स्वरूपनो अनुभव करवो ते ज
अशुद्धता टाळवानो उपाय छे. परद्रव्यथी राग–
द्वेष माने तेने अशुद्धता कदी मटे नहि. जे परने
पोतानुं माने तेने अशुद्धता न थाय तो बीजुं शुं
थाय? परना कारणे जे अशुद्धता माने तेने
अशुद्धता टाळवानो अवसर आवे नहि, केमके
अशुद्धता परथी मानी एटले अशुद्धताने टाळवा
माटे ते पर सामे ज जोया करे, ने पर सामे जोये
अशुद्धता कदी मटे नहि. शुद्धस्वभावपणे पोताने
अनुभवे तो ज अशुद्धता मटे. माटे
शुद्धस्वभावनो अनुभव करवो ते ज अशुद्धताने
टाळवानो उपाय छे–एम हे जीव! तमे जाणो.
जीव पुद्गल धर्म काल आकाशका अखंड धारारूप परिणाम अपने–अपने
स्वरूपसे है ऐसा ही अनुभवमें निश्चित होता है और ऐसे ही वस्तु सधती है,
अन्यथा विपरीत है।
वस्तुस्वरूपनी साची द्रष्टि जोतां दरेक द्रव्य पोते पोताना परिणामनी
अखंडधारामां वर्ते छे, एटले आत्माने रागद्वेषनुं उत्पादक अन्यद्रव्य जरापण नथी.
द्रव्य ज पोतानी परिणामधारामां वर्ते छे त्यां बीजो तेमां शुं करे? कांई न करे,–आवुं
वस्तुस्वरूप निश्चित छे. अने आ रीते ज वस्तु सधाय छे एटले वस्तुस्वरूपनी साची
श्रद्धा थाय छे. आनाथी विपरीत माने तो ते वस्तुस्वरूप नथी.
अनुभवथी एम नक्की थाय छे–एटले के