: चैत्र : २४९२ आत्मधर्म : २१ :
वस्तुस्वरूपना साचा ज्ञानथी एम नक्की थाय छे के दरेक वस्तुनी पर्याय तेना पोताथी
थाय छे, वस्तु सत् छे,–तो तेनी पर्याय तेनाथी होय के बीजाथी होय? शुं वस्तुना
परिणामना प्रवाहनी धारा कोईथी तूटी शके छे? नहि, तोपछी वस्तुना परिणामने
बीजो कई रीते करे? कोई रीते करी शके नहि.
मारी पर्यायनुं कार्य मारुं द्रव्य करे, मारी निर्मळ पर्यायनी धारारूपे हुं ज
परिणमुं,–एम नक्की करतां स्वभावसन्मुख जोवानुं रह्युं ने पर साथे एकत्वबुद्धिनी
मिथ्या भ्रांति टळी गई. आम वस्तुस्वरूपना निर्णयथी मोक्षमार्ग शरू थाय छे.–आ रीते
ज वस्तुस्वरूप सधाय छे; आनाथी बीजी रीते मानवा जाय तो तेमां विपरीतता छे.
रागद्वेष परने कारणे नथी, तेमज ते शुद्धसत्तारूप वस्तु पण नथी, एक क्षणिक
अशुद्धपरिणति छे, ने ते टळी शके छे. जेम जीवद्रव्य शुद्धसत्तास्वरूप विद्यमान वस्तु छे, ते कदी
टळे नहि, तेम राग द्वेष कांई द्रव्यनी जेम सत्तारूप नथी, ए तो क्षणपूरता परिणाम छे. जीव
पोताना शुद्धद्रव्यनी सन्मुख थईने स्वभावरूप परिणमे त्यां रागद्वेष मटी जाय छे. अने आम
थवानुं सुगम छे, कांई मुश्केल के अशक््य नथी. जीव जो अपने स्वभावरूप परिणमे तो
रागद्वेष सर्वथा मिटे। ऐसा होना सुगम है, कुछ मुश्किल नहीं है। भूतार्थरूप जे स्वभाव
तेना आश्रये अभूतार्थ एवी अशुद्धपरिणति मटे छे ने शुद्धपरिणति थाय छे.
अरे, हजी तो परद्रव्य परिणतिने करे, ने जीव परद्रव्यनी परिणतिने करे, एवी
विपरीतबुद्धिमां अटक्यो ते जीव स्वभावनो आश्रय क््यारे करे? स्व–परनी एकताबुद्धि
पण नथी छोडतो ते अंदरमां स्वभाव अने विभाव वच्चेनुं सूक्ष्म पृथक्करण कई रीते
करशे? भाई तुं रागद्वेष अशुद्धतारूपे परिणमी रह्यो छे तेने बदले शुद्धतारूपे परिणम,
तो कोण तने रोके छे? कोई तने रोकतुं नथी. तो शा माटे परनो दोष काढे छे?–माटे कहे
छे के–संसार अवस्थामां जीवद्रव्य रागद्वेषमोहादि अशुद्ध चेतनारूप परिणमे छे, ते
खरेखर वस्तुस्वरूप विचारतां जीवनो पोतानो दोष छे, कर्म वगेरे पुद्गलनो तो तेमां
कांई दोष नथी. अज्ञानथी अशुद्धतारूप परिणमे छे तेने बदले पोते शुद्धपरिणतिरूप
परिणमे ने शुद्धस्वरूपनो अनुभव करे तो कोण तेने रोके छे? कोई रोकतुं नथी. तेम
अशुद्धतारूप परिणमतां कोई जीवने बीजुं कोई अशुद्धपणे परिणमावतुं नथी; शुद्धतामां
बीजानो जराय टेको नथी तेम अशुद्धतामां बीजानो जराय अपराध नथी. शुद्धतामां के
अशुद्धतामां जीव पोते ज स्वयं परिणमे छे. पण आवो वस्तुस्वभाव जेणे नक्की कर्यो
तेने तो स्वद्रव्य तरफना झुकावथी शुद्धतारूप परिणमन शरू थई ज जाय छे.
एम विदित थाओ के, जीव रागादि अशुद्धतारूपे परिणमे छे ते जीवनो ज दोष
छे, पुद्गलद्रव्यनो दोष नथी. माटे मोहादि अशुद्धपरिणतिनो नाश थाओ, ने ‘हुं शुद्ध
चैतन्य छुं’–एम स्वभावनो अनुभव करो.