Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९२ आत्मधर्म : २५ :
निमित्तो तो अनेक प्रकारनां छे. जेने बाह्य द्रव्य निमित्त छे, तेना आधारे कांई
मोक्षमार्ग नथी, तेम अंदरनो शुभराग ते पण बाह्यद्रव्यनी जेम ज निमित्त छे; तेना
आधारे मोक्षमार्ग नथी. मोक्षमार्गथी तो जेम अन्य द्रव्य बाह्य (भिन्न) छे, तेम
शुभराग पण बाह्य छे, भिन्न छे. अंतरद्रष्टि वडे धर्मी जीव आवा मोक्षमार्गने साधे छे.
स्वभावनी अंतरद्रष्टि पूर्वक ज मोक्षमार्ग सधाय छे, ए अंर्तद्रष्टि वगर मोक्षमार्ग
सधातो नथी.
आवी अंतरद्रष्टि वगर अज्ञानी शुभराग करे अने ए व्यवहाररत्न त्रयादिना
शुभरागने ज मोक्षमार्ग मानी ल्ये पण ए कांई मोक्षमार्ग नथी, ए तो मात्र भ्रम छे.
सम्यग्दर्शन थाय ने स्वानुभवनी पत्रिका कणिका जागे त्यारे ज मोक्षमार्ग साचो. एना
विना मोक्षमार्ग खोटो एटले के मोक्षमार्ग नहि. अरे, सम्यग्दर्शन अने स्वानुभव
वगर, एकला शुभरागने मोक्षमार्ग मानवो ते तो वीतराग जैनमार्गनी विराधना छे.
जिन भगवाने एवो मोक्षमार्ग कह्यो नथी. जिन भगवाने तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान
चारित्रने मोक्षमार्ग कह्यो छे–के जे स्वानुभव पूर्वक ज होय छे. स्वरूपाचरणरूप चारित्र
ते पण चोथा गुणस्थाने स्वानुभवपूर्वक ज प्रगटे छे. स्वानुभव वगर शुं शुभराग
करतां करतां मोक्षमार्ग प्रगटी जाय एम कदी बनतुं नथी. अहीं तो कहे छे के ते शुभराग
बाह्य निमित्तरूप छे, अने ते पण कोने?–के अंतरद्रष्टिथी जे मोक्षमार्गने साधे छे तेने ते
शुभभाव बाह्य निमित्त छे, अज्ञानीने तो ते मोक्षमार्गनुं निमित्त पण नथी. उपादानमां
ज ते मोक्षमार्गने नथी साधतो पछी मोक्षमार्गनुं निमित्त तेने केवुं? अध्यात्मपध्धति ज
तेने नथी, एकली बंधपध्धतिमां ज ते राची रह्यो छे.
मोक्षमार्गमां वच्चे शुभरागने निमित्तरूप कह्यो, ते शुभराग बधा मोक्षमार्गीने
एक ज प्रकारनो होय–एम नथी, तेमां अनेक प्रकारनो होय छे. स्वभावना परिणाम
एक सरखा होय पण विकारना परिणाम बधाने एकसरखा न होय. द्रव्यस्वभाव
त्रिकाळ एक सरखो छे; अखंड अक्रिया शुध्ध द्रव्य ते निश्चय, ने तेना आश्रये मोक्षमार्ग
साधवो ते व्यवहार. मोक्षमार्ग एटले निश्चय–रत्नत्रयपरिणति, ते धर्मीने व्यवहार छे.
अने जे व्यवहाररत्नत्रय (शुभरागरूप) छे ते बाह्यनिमित्तरूप छे. अहीं
मोक्षमार्गपर्यायने व्यवहार कह्यो, आ मोक्षमार्ग कांई रागवाळो नथी; व्यवहाररत्नत्रय
रागरूप छे ते बंधपध्धत्तिमां छे, ने निश्चय रत्नत्रय मोक्षमार्गपध्धतिमां छे. मोक्षमार्गनुं
ने निश्चय–व्यवहारनुं आवुं स्वरूप सम्यग्द्रष्टि जाणे छे; मूढ–अज्ञानीने तेनी खबर
पडती नथी, अने सांभळवामां आवे तो पण तेने ए वात बेसती नथी; ए तो
बंधपध्धत्तिने (रागने) साधतो थको