Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९२ आत्मधर्म : ३५ :
‘अधर्मास्तीकाय’ ज्यारे जीव अने पुद्गल गतिपूर्वक स्थिति करे त्यारे
उदासीन निमित्त बने छे. ते पण अरूपी द्रव्य छे. तेनामां स्थितिहेतुत्व नामनो विशेष
गुण छे. ‘आकाश’ ना बे भेद छे. ते अरूपीद्रव्य छे तेनामां अवगाहनहेतुत्व नामनो
विशेषगुण छे. ‘काळद्रव्य’ स्वयं परिणमता छद्रव्योने परिणमवामां निमित्त बने छे.
तेनामां परिणमनहेतुत्व नामनो विशेषगुण छे. ते पण अरूपीद्रव्य छे.
जवाब ३. आ अवसर्पीणीनी चोवीशीना प्रथम तिर्थंकर ‘वृषभदेव’ भगवान
हता अने छेल्ला चोवीसमां तिर्थंकर ‘महावीर’ भगवान हता. ली. भरत खीमचंद
सभ्य नं. ६.
योगेशकुमार जैन (अमदावाद) : तमे धर्मनी भावना लखी ते बदल
धन्यवाद! तमारी भावनाओ सफळ थाव! मोटा थाव त्यारे आ भावना भूली न जशो
हो! (आ भावना बाळपोथीमां छे, एटले अहीं नहि छपाय.)
तरूणाबेन (अमदावाद) : पोतानी बेनपणी वासंतीबेन उपर लखे छे के–तमे
जे १ थी १० सुधी पाठ शीखववाना छो, तो हुं पण नीचे प्रमाणे १ थी १० सुधीना अंक
विषे लखी मोकलुं छुं.
१ एक कहे छे के एक अखंड आत्मानो विश्वास कर.
२ बे कहे छे के स्व–पर बंनेनुं भेदविज्ञान कर.
३ त्रण कहे छे के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणने प्राप्त कर.
४ चार कहे छे के अनंत ज्ञान–दर्शन–सुख–बळ ए चार प्रगट कर.
प पांच कहे छे के पंचाचारनुं पालन करी मोक्षने पाम.
६ छ कहे छे के छ द्रव्यनुं स्वरूप जाण.
७ सात कहे छे के साततत्त्वनुं स्वरूप जाणीने सात प्रकृतिनो क्षय कर.
८ आठ कहे छे के सिद्धना आठ गुण प्रगट कर.
९ नव कहे छे के नव पदार्थने ओळखीने नवलब्धि प्रगट कर.
१० दश कहे छे के दशधर्मने धारण करीने आत्मानुं ध्यान धर.
(बेन, तमारा एकथी दशाना अंक अमने गम्या, तेथी अहीं आप्या छे. हवे
आगळ पण ११ थी १०० सुधी लखी मोकलजे. धन्यवाद!) – सं)