Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 53

background image
––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––
सर्वज्ञनी प्रतीत अने धर्म
आत्मानुं भान करी तेमां लीनता प्रगट करी, जेमणे
बाह्य ने अभ्यंतर परिग्रह छोडयो, तथा शुक्लध्याननी श्रेणी
वडे चार घातीकर्मोने नष्ट करी केवळज्ञानादि प्रगट कर्या एवा
सर्वज्ञदेव परमात्माना वचन सत्यधर्मनुं निरूपण करनार छे.
आवा सर्वज्ञने ओळखे त्यां आत्माना ज्ञानस्वभावनी प्रतीत
थाय, ने त्यारे धर्मनी शरूआत थाय. सर्वज्ञतानी प्रतीत जे
नथी करतो तेने आत्मानी ज प्रतीत नथी, धर्मनी ज प्रतीत
नथी, तेने शास्त्रकार ‘
महापापी अथवा अभव्य” कहे छे.
सर्वज्ञना स्वरूपमां जेने संदेह छे, सर्वज्ञनी वाणीमां
जेने संदेह छे, सर्वज्ञदेव सिवाय बीजा कोई सत्य धर्मना प्रणेता
नथी एम जे ओळखतो नथी ने विपरीत मार्गमां दोडे छे ते
जीव महापापी छे;–आम कहीने धर्मना जिज्ञासुने सौथी पहेलां
सर्वज्ञनी अने सर्वज्ञना मार्गनी ओळखाण करवानुं कह्युं.
अरे, तुं ज्ञाननी प्रतीत वगर धर्म क््यां करीश? रागमां
ऊभो रहीने सर्वज्ञनी प्रतीत थती नथी; रागथी जुदो पडीने,
ज्ञानरूप थईने सर्वज्ञनी प्रतीत थाय छे. आवा सर्वज्ञनी ने
ज्ञानस्वभावनी ओळखाण करीने तेमना वचन अनुसार
धर्मनी प्रवृत्ति थाय छे. समकितीनां जे वचन छे ते पण
सर्वज्ञअनुसार छे केमके तेना हृदयमां सर्वज्ञ बेठा छे.