Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
बधी चिन्ता छोडीने
निश्चिंतपणे चैतन्यने चिन्तव
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(तारा आत्माने एक क्षण तो चिन्तव,
अरे! वर्तमान अडधी क्षण तो चिंतव)
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रे चैतन्य हंस! स्व–परनो विवेक करीने, तुं समस्त चिन्ताने छोडीने, निश्चिन्त
थईने, परम पदमां तारा चित्तने जोड.
रे जीव! मांड आवो मनुष्य अवतार अने जन्ममरण टाळवानो अवसर मळ्‌यो
छे, तो संसारनी समस्त चिन्ता छोडीने तारा चित्तने अंतरमां वाळ, ने अंतरमां तारूं
निजपद परम आनंदथी भरेलुं छे तेमां तारा चित्तने स्थिर कर. चैतन्यस्वरूपमां चित्तने
जोडतां जे सुख थाय छे ते सुख जगतमां बीजे क््यांय नथी; ईन्द्रपदमांय जे सुख नथी
ते सुख चैतन्यना अनुभवमां धर्मात्माने छे.
जुओ भाई, आत्माने सुख थाय एवी वात तो आ छे. आ आत्मा परद्रव्यथी
जुदो, ने परभावनी उपाधि वगरनो, पोते ज ज्ञान ने आनंदथी भरेलो, एमां बीजी
चिन्ता केवी? अरे, तारा चैतन्यने भूलीने तुं पारकी चिन्तामां पड्यो? पण एमां तारूं
शुं प्रयोजन छे? तारी स्व वस्तुनुं माहात्म्य जाणीने एने तुं सेव. स्व तत्त्वनुं सेवन
कर! अनादिथी करोडियानी जाळ जेवी चिन्ताजाळमां तुं अटवायो, ने दुःखी थयो, हवे
तो परनी चिन्ता छोडीने सुखना रस्ता ले. निश्चिंत थईने निरंजन परम तत्त्वने
ध्यानमां ले. अंतरमां तारो आत्मा निरंजन देव छे, तेमां परनी चिन्तानो प्रवेश नथी.
आवा निज शुद्धात्माने ध्यावतां जे अतीन्द्रिय आनंद थाय छे ते सुख त्रण
लोकमां बीजे क्यांय नथी; करोडो देवी साथे रमनारा ईन्द्रने पण ते वैभवमां सुख नथी,
परद्रव्यना अनुरागमां तो आकुळता छे–दुःख छे. आराधवा योग्य तो स्वद्रव्य ज छे.
आवा आत्माने ओळखीने पहेलां निर्णय कर...ने पछी बीजी चिन्ताओ छोडीने
निश्चिंतपणे आत्माने ध्यावतां तने सम्यग्दर्शन थशे, तेमां तेने अपूर्व शांति ने आनंद
थशे. ज्ञानदर्शनमय निज शुद्धात्माना अनुभवमां अनंत सुख छे.