ने परनी चिन्तामां दुख छे.....त्यां तुं दोडीने जाय छे. सन्तो कहे छे–भाई, ए
चिंतव.
जाणे तो एनुं ध्यान करे ने खोटुं ध्यान छोडे.
उत्तर:– तने परनुं ध्यान करतां तो आवडे छे! केमके त्यां प्रेम छे. स्त्री पुत्र–
रीते आत्मानो प्रेम प्रगटाव तो आत्माना चिन्तनमां एकाग्रता थाय, एनुं नाम ध्यान
छे. परनो प्रेम छोड ने आत्मानो प्रेम कर, तो आत्मानुं ध्यान थया वगर रहे नहि.
जेने खरो रंग लाग्यो ते बीजी बधी चिन्ता छोडीने निश्चिंतपणे आत्मामां चित्तने जोडे
छे, ने आत्माना ध्यानथी कोई अपूर्व सुख तेने प्रगटे छे. आ बधुं पोतामां ने पोतामां
ज समाय छे. आमां परनी कोई उपाधि नथी, परनी कोई चिन्ता नथी. अहा, जेना
अवलोकनमां अत्यंत सुख छे एवो हुं छुं, एम तुं तारा आत्माने देख. ज्यां पोतामां ज
सुख छे त्यां परनी चिंता शी? परभावथी भिन्न थईने जेना एक क्षणना अवलोकनमां
आवुं सुख एना पूर्ण सुखनी शी वात! एम धर्मीने आत्मानो कोई परम अचिन्त्य
महिमा स्फूरे छे...पोतामां ज आनंदना दरिया उल्लसता ते देखे छे. आम जाणीने हे
पण तारामां एवुं ज सुख देखाशे. एक क्षण तो ध्यान कर...अरे, वर्तमान अडधी क्षण
तो कर.