Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 53

background image
: चैत्र : २४९२ आत्मधर्म : ३ :
अरे, सुख तारा आत्मामां...तेनी सामे तुं जोतो नथी;
ने परनी चिन्तामां दुख छे.....त्यां तुं दोडीने जाय छे. सन्तो कहे छे–भाई, ए
परनी चिन्ताथी तुं पाछो वळ ने आनंदना धाम एवा तारा आत्माने तुं निश्चिंतपणे
चिंतव.
आत्माना वखाण सांभळवा मात्रथी एनो स्वाद आवे नहि, पण पोते
अंतरमां ए आत्माने ध्यावे तो एनो साक्षात् स्वाद आवे.
जे पोतानुं छे तेने पोतानुं जाणतो नथी, ने जे पोतानुं नथी तेने पोतानुं करवा
मांगे छे–तेथी जीव दुःखी थाय छे. स्वतत्त्व शुं ने एनो अपार वैभव केवो छे? एने
जाणे तो एनुं ध्यान करे ने खोटुं ध्यान छोडे.
प्रश्न:– आत्मानुं ध्यान केम थाय?
उत्तर:– तने परनुं ध्यान करतां तो आवडे छे! केमके त्यां प्रेम छे. स्त्री पुत्र–
पैसा–वेपार वगेरेनो प्रेम होवाथी तेना विचारमां केवो मशगुल थई जाय छे? तो ए ज
रीते आत्मानो प्रेम प्रगटाव तो आत्माना चिन्तनमां एकाग्रता थाय, एनुं नाम ध्यान
छे. परनो प्रेम छोड ने आत्मानो प्रेम कर, तो आत्मानुं ध्यान थया वगर रहे नहि.
केमके जेने जेनो प्रेम होय तेनी चिंतामां ते एकाग्र थाय छे. चैतन्यस्वरूपनी प्राप्तिनो
जेने खरो रंग लाग्यो ते बीजी बधी चिन्ता छोडीने निश्चिंतपणे आत्मामां चित्तने जोडे
छे, ने आत्माना ध्यानथी कोई अपूर्व सुख तेने प्रगटे छे. आ बधुं पोतामां ने पोतामां
ज समाय छे. आमां परनी कोई उपाधि नथी, परनी कोई चिन्ता नथी. अहा, जेना
अवलोकनमां अत्यंत सुख छे एवो हुं छुं, एम तुं तारा आत्माने देख. ज्यां पोतामां ज
सुख छे त्यां परनी चिंता शी? परभावथी भिन्न थईने जेना एक क्षणना अवलोकनमां
आवुं सुख एना पूर्ण सुखनी शी वात! एम धर्मीने आत्मानो कोई परम अचिन्त्य
महिमा स्फूरे छे...पोतामां ज आनंदना दरिया उल्लसता ते देखे छे. आम जाणीने हे
जीव! तुं पण धर्मात्मानी जेम निश्चिंतपणे तारा आत्माने परम प्रीतिथी ध्याव....तने
पण तारामां एवुं ज सुख देखाशे. एक क्षण तो ध्यान कर...अरे, वर्तमान अडधी क्षण
तो कर.