Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
* ज्यां चैतन्यनुं चिन्तन त्यां परम आनंद *
ज्यां परनुं चिन्तन त्यां दु:ख
* रे हंसला! स्व–परना विवेक वडे, समस्त परनी चिन्ता छोडीने निश्चितपणे
तारा परमात्मास्वरूपमां चित्तने जोड... तने परम आनंद थशे.
* चैतन्यस्वरूपमां चित्तने जोडतां जे सुख थाय छे ते सुख जगतमां बीजे क््यांय
नथी. अरे, आवा तारा सुखने छोडीने तुं पारकी चिन्तामां केम पड्यो?
* अनादिथी परचिन्ता वडे तुं दुःखी थयो; हवे तो सुखना रस्ता ले. तारी
स्ववस्तुनुं माहात्म्य जाणीने एने तुं सेव.
* आत्माने ओळखीने तेनो निर्णय कर, ने पछी बीजी चिन्ताओ छोडीने
निश्चिंतपणे आत्माने ध्यावतां तने सम्यग्दर्शन थशे, तेमां अपूर्व शांति ने परम
आनंद थशे.
* सुख तारा आत्मामां....तेनी सामे तुं जोतो नथी;
परनी चिन्तामां दुःख छे....त्यां तुं छोडीने जाय छे.
सन्तो कहे छे–भाई, परनी चिन्ताथी पाछो वाळ,
ने आनंदधाम एवा आत्माने तुं निश्चिंतपणे चिंतव.
* आत्मानां वखाण सांभळवा मात्रथी एनो स्वाद आवे नहि; पण पोते
अंतर्मुख थईने ए आत्माने ध्यावे तो एनो साक्षात् स्वाद आवे.
* जे पोतानुं छे तेने पोतानुं जाणतो नथी, अने जे पोतानुं नथी तेने पोतानुं
करवा मांगे छे–तेवी जीव दुःखी थाय छे.
* परनी प्रीतिवाळो चित्तने परमां एकाग्र करीने परनुं ध्यान करे छे. आत्मानी
प्रीतिवाळो परनी चिंता छोडे छे ने चित्तने आत्मामां एकाग्र करीने आत्मानुं
ध्यान करे छे. परना चिन्तनमां दुःख छे, आत्माना चिन्तनमां सुख छे.
* अहा, जेना अवलोकनमां अत्यंत सुख छे.–एवो तुं छुं एम तुं तारा आत्माने
देख, ज्यां पोतामां ज सुख छे त्यां परनी चिन्ता शी?