: ४२ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
उत्तर:– बंधनां पांच कारणो मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय ने योग–कह्यां छे,
पण शरीरादि जडने तो क््यांय बंधनुं कारण कह्युं नथी; ए ज रीते,
मोक्षनुं कारण वर्णवतां ‘सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र’ ने ज मोक्षमार्ग कह्यो
छे, ए सिवाय जडनी कोई क्रियाने तो मोक्षमार्ग कह्यो नथी; तेमज
शुभराग उदयभाव छे तेने पण मोक्षमार्ग कह्यो नथी. आ रीते
आत्माना ऊंधा के सवळा भाव ज बंध के मोक्षनुं कारण छे; शरीरनी
क्रिया वगेरे परद्रव्य आत्माने बंधनुं के मोक्षनुं कारण नथी; शुभरागादि
उदयभाव ते पण मोक्षनुं कारण नथी.
(९४) प्रश्न:– स्वघरमां प्रवेश थतां शुं थाय?
उत्तर:– सम्यक्त्वरूपी दरवाजा वडे हुं मारा स्वरूप–घरमां प्रवेश करुं त्यां परम
आनंदनो अनुभव छे ने अचिंत्य निजनिधाननी प्राप्ति छे. स्वघरमां
प्रवेश वगर सुख थाय नहि. स्वघरनी बहार परभावोमां कदी किंचित्
सुख मळे नहि. हे जीव! अचिंत्यवैभवथी भरेलुं तारुं घर सन्तो तने
बतावे छे, तुं सम्यक्श्रद्धारूपी दरवाजा वडे तेमां प्रवेश कर....तने परम
आनंद थशे.
(९प) प्रश्न:– आत्माना आनंदनो रस केवो छे?
उत्तर:– चैतन्यना आनंदना रस पासे धर्मी जीवने जगतना बधा विषयोमांथी
रस ऊडी गयो छे; अज्ञानी पोताना शांत अनाकुळ चैतन्यरसना
आनंद–स्वादने भूलीने बाह्यविषयोमां सुख मानीने लयलीन थयो छे;
रागनी रमतमां ते आत्माना वैभवने लूंटावी नांखे छे. भाई!
चैतन्यना आनंदमां केवी मजा छे! ते तो एकवार जो. अहा, चैतन्यना
आनंदनी मजा!–जेनी जगतमां अज्ञानीने खबर पण नथी;–रागवडे जे
लक्षगत थई शकतो नथी;–आवो आनंद तारामां ज भरेलो छे, तेनो तुं
रसिलो था....ने जगतनो रस छोड.
(९६) प्रश्न:– धर्मात्मानी अनुभूति केवी छे?
उत्तर:– धर्मी स्वसन्मुख परिणाम वडे शुद्धात्माने अनुभवे छे; ते वर्तमान
परिणाममां तेने भूतकाळनी अशुद्धतानुं प्रतिक्रमण वर्ते छे, ते ज
परिणाममां वर्तमान अशुद्धताना अभावरूप आलोचना छे ने ते ज
परिणाममां भवि–