Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९२ आत्मधर्म : ४३ :
ष्यनी अशुद्धतानुं प्रत्याख्यान छे आम स्वसन्मुख अनुभवमां एकाग्र
थयेला एक समयना परिणाममां त्रणकाळनी अशुद्धतानो त्याग वर्ते छे,
ने त्रिकाळी शुद्धस्वभावनुं तेमां ग्रहण छे. –आवो शुद्धात्मानो अनुभव
सम्यग्द्रष्टिने होय छे. ते अनुभवने ज्ञानचेतना कहे छे. आ
ज्ञानचेतनामां आठे कर्मोनो ने तेनां फळनो अभाव छे. ज्ञानचेतनाए
अंतरमां शुद्धात्माने जोयो छे ने ते तरफ ते वळी छे. एटले तेमां ज
एकता करीने ‘आ हुं’ एम शुद्धात्माने हुं–पणे चेते छे, ‘विकार ते हुं’
एम ते ज्ञानचेतना अनुभवती नथी.–आथी धर्मात्मानी अनुभूति होय
छे. शुद्धस्वभावने स्पर्शती ने परभावने पृथक् राखती धर्मात्मानी आवी
अनुभूति ते मोक्षमार्ग छे.
(९७) प्रश्न:– आ शरीर आत्माने रागद्वेष करावे छे–ए वात साची?
उत्तर:– ना; कोई पण परद्रव्य आत्माने रागद्वेष करावे नहि. शरीर तो आत्माने
रागद्वेष नथी करावतुं, ने मोहादि द्रव्यकर्म पण आत्माने रागद्वेष करावतुं
नथी; पोतानी परिणामशक्तिथी विभावमां परिणमतुं जीवद्रव्य पोते ज
रागद्वेषरूपे परिणमे छे; पोते स्वयं विभावरूप न परिणमे तो परद्रव्य
कांई बळात्कारथी जीवने रागादिरूपे परिणमावतुं नथी. जीवनी त्रिकाळी
शक्तिमां विकार नथी एटले विकार करवानो स्वभाव नथी, पण
पर्यायमां तो पोताना परिणामनी शक्तिथी ज विकाररूपे परिणमे छे.
आ विकार परिणामनी शक्ति पर्यायपूरती एकेक समयनी छे. ते विकार
नथी तो शुद्ध शक्तिमांथी आव्यो, के नथी परद्रव्ये कराव्यो; ते–ते
समयनी पर्यायमां तेवी परिणामशक्तिथी विकार थयो छे–एम जाणवुं.
(९८) प्रश्न:– विकार पोतानी पर्यायमां ते समयनी परिणामशक्तिथी ज थाय छे. एम
जाणवाथी शुं फायदो?
उत्तर:– प्रथम तो परद्रव्य विकार न करावे, एटल पऱद्रव्य मने रागद्वेष करावे
एवी मिथ्याबुद्धि छूटी जाय छे; तथा विकार शुद्धस्वभावशक्तिमां नथी
पण पर्यायनी तेवी लायकातथी छे, एटले, विकार जेटलो ज हुं एवी
पर्यायबुद्धि छूटी जाय छे, विकारना काळे पण विकारथी पार एवुं
पोतानुं शुद्धतत्त्व द्रष्टिमां रह्या करे छे; आ रीते शुद्धस्वभावनी
सन्मुखताथी सम्यक्त्वादिनुं परिणमन थया करे छे,–ए अपूर्व लाभ छे.
ने जे परद्रव्य विकार करावे