Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : प :
ईष्ट अने ध्येय
आत्मानुं ईष्ट शुं अने तेनी प्राप्तिनो उपाय शुं? ते
अहीं बताव्युं छे. अरे जीव! आ ईष्टनी प्राप्तिनो अवसर
छे. संतो तने तारा ईष्टनी प्राप्तिनी रीत बतावे छे. पहेलां
ईष्टनुं स्वरूप नक्की कर. तारुं ईष्ट ने तारुं ध्येय क््यांय
बहार नथी, ताराथी जराय दूर नथी. तारामां ज छे. तारुं
ईष्ट राग वगरनुं छे ने तेनी प्राप्तिनो उपाय पण राग
वगरनो ज छे; केमके साध्य ने साधन बंने एक जातना छे.
ईष्टनो उपदेश एटले के ईष्ट शुं छे ने ते ईष्टनी प्राप्ति केम थाय? ते बतावे छे.
जे जीव ईष्टनो अर्थी होय, एटले के सुखनो अभिलाषी होय, आत्महित करवा चाहतो
होय, ते जीवने, स्वसंवेदनमां प्रगट अने सुखमय एवो निजात्मा ज ध्येयरूप छे.
लोकालोकने जाणवानी ताकातवाळो आत्मा अत्यंत सौख्यमय छे, स्वसंवेदनमां ते प्रगटे
छे, ने ते ज धर्मीनुं ध्येय छे.
आ आत्मा ज एवो दिव्य चिन्तामणि छे के जेना चिंतनथी परम सुख ने
केवळज्ञानादि प्राप्त थाय छे. ज्यां आवो चिंतामणि पोतामां प्राप्त छे त्यां अन्य
पदार्थोथी शुं प्रयोजन छे? माटे पोतानो आत्मा ज ईष्ट अने ध्येय छे. राग के संयोग ते
ईष्ट नथी, ध्येय नथी.
भाई, तारुं ध्येय ने तारुं ईष्ट क््यांय बहार नथी, जराय दूर नथी, तारामां ज
छे. आ शरीर जेटला तारा असंख्य प्रदेशी स्वक्षेत्रमां ज्ञान ने आनंद परिपूर्ण भर्या छे.
आवा ज्ञानानंदथी भरेलो तारो आत्मा ते ज तारुं ईष्ट ने तारुं ध्येय छे. तेनुं
स्वसंवेदन करतां ज तने ईष्टनी एटले आनंदनी प्राप्ति थशे. ए स्वसंवेदन आत्मा
पोते पोताथी ज करी शके छे, तेमां कोई बीजानी मदद नथी, रागनुं अवलंबन नथी.
ज्ञान पोते अंतर्मुख थईने आत्मानो प्रत्यक्ष अनुभव करे छे, अने आवुं स्वसंवेदन ए
ज ईष्टनी प्राप्तिनो मार्ग छे. विकल्प वगरनुं अंतरनुं वेदन ते आत्मानी अनुभूति छे,
ने आत्मानुं