Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ११ :
(१०८) प्रश्न:– संसारी अने मुक्त बधाय जीवोमां होय ते क््यो भाव?
उत्तर:– पारिणामिकभाव बधाय जीवोने होय छे.
(१०९) प्रश्न:– संसारदशामां न होय ए क््यो भाव?
उत्तर:– पांचे भावो संसारदशामां संभवे छे. क्षायिकभाव पण अरिहंतो वगेरेने
होय छे.
(११०) प्रश्न:– मोक्षदशामां न होय ए कया भाव?
उत्तर:– पांच भावोमांथी उदय, उपशम ने क्षयोपशम ए त्रण भावो मोक्षमां
होता नथी; बाकीना बे भावो क्षायिक अने पारिणामिक ज मोक्षमां होय छे.
जय जिनेन्द्र
अध्यात्मतत्त्वना जिज्ञासुने अंतरमां
वैराग्य अने कषायनी मंदता तो होय ज. जेने
कषायनी मंदता अने वैराग्य होय तेने ज
आत्मस्वरूप समजवानी जिज्ञासा जागे. भाई,
अनंतकाळे समजवाना टाणां आव्या, देह क््यारे
छूटशे एनो कोई भरोसो नथी–आवा काळे जो
कषायने मुकीने आत्मस्वरूप नहि समज तो क्यारे
समजीश? जो स्वभावनी परिणति प्रकट करीने
साथे न लई जा तो तें आ जीवनमां शुं कर्युं?