Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
केवळज्ञान
केवळज्ञान ए संतोनुं प्रिय ध्येय छे, संतोए केवळज्ञानना अपार
गुणगान गाया छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए पण वारंवार केवळज्ञान प्रत्ये अतिशय
भक्ति व्यक्त करी छे....अहीं तेमनां केटलांक वचनो आपवामां आव्यांं छे–
* सर्वज्ञपदनुं ध्यान धरो.
* सर्वज्ञपद वारंवार श्रवण करवायोग्य, वांचवायोग्य विचार करवायोग्य, लक्ष
करवायोग्य अने स्वानुभवसिद्ध करवायोग्य छे.
* (हाथनोंध पृ. २३ मां केवळज्ञानना महिमानी धारा वहावतां लखे छे.)
केवळज्ञान
एक ज्ञान.
सर्व अन्य भावना संसर्गरहित एकांत शुद्ध ज्ञान.
सर्व द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनुं सर्व प्रकारथी एक समये ज्ञान.
ते केवळज्ञाननुं अमे ध्यान करीए छीए.
निज स्वभावरूप छे.
स्वत्वभूत छे.
निरावरण छे.
अभेद छे.
निर्विकल्प छे.
सर्व भावनुं उत्कृष्ट प्रकाशक छे.
हुं केवळ ज्ञान स्वरूप छुं, एम सम्यक् प्रतीत थाय छे.
तेम थवाना हेतुओ सुप्रतीत छे.
सर्व ईन्द्रियोनो संयम करी, सर्व परद्रव्यथी निजस्वरूप व्यावृत करी, योगने
अचल करी, उपयोगथी एकता करवाथी, केवळज्ञान थाय.