आवतो नथी, आत्मा तो सळंगपणे ते ज रहे छे. मनुष्यदेहमां जे आत्मा हतो ते ज
देवना शरीरमां आव्यो छे. रातापीळा रंग देखाय छे ते आत्मा नथी, आत्मा तो रंग
वगरनो अरूपी चैतन्यमूर्ति छे. शरीरना रंग देखीने धर्मी पोताने तेवा रंगवाळा
आम धर्मी पोताना आत्माने देहथी भिन्न जाणे छे.
छे. जेम थांभलानी क्रियाथी आत्माने धर्म नथी, तेम देहनी क्रियाथी आत्माने धर्म नथी.
जेम थांभलो अचेतन परमाणुनो पिंड छे तेम शरीर पण अचेतन परमाणुनो पिंड छे.
फरीफरीने देहने धारण करे छे, ने संसारमां रखडे छे. ज्ञानीने एकाद बे भव कदाच
थाय, पण त्यां ते शरीरने आत्मबुद्धिथी धारण करता नथी; ते तो आत्माने ज पोतानो
मानीने आराधे छे, एटले आत्मानी आराधनाथी ते मुक्ति पामे छे.
पर्यायो पलटे छे पण तेनो सर्वथा नाश थतो नथी. शरीर तो जड परमाणु भेगा थईने
रचायेलुं छे, तेमां क््यांय सुख के धर्म भर्यो नथी; मारुं तो चैतन्यशरीर छे, मारा
चैतन्यशरीरमां ज ज्ञान–आनंद भर्या छे, तेमां जेटलो एकाग्र थाउं तेटला ज्ञान ने
आनंद प्रगटे छे.–आम जाणीने धर्मी पोताना आत्मामां ज एकाग्रता करे छे, तेनुं नाम
धर्म छे.
शकतो नथी, केमके ते चीज जुदी छे. आत्मा तेनुं ज्ञान करी शके पण तेने फेरवी शके नहि.
तेमज शरीर काळुं होय तो तेने आत्मा जाणे पण तेने काळमांथी धोळुं करी शके नहि.
ने आनंद ते ज चैतन्यनो रंग छे, ते ज चैतन्यनुं रूप छे; सिद्ध जेवी (केवळ ज्ञान ने
केवळदर्शनरूप) एनी आंखो छे. आ सिवाय कामदेव जेवुं देहनुं रूप के हरणीयां