Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
मनुष्यनुं खोळीयुं बदलीने देवनुं खोळीयुं आवे त्यां कांई आत्मा बदलीने बीजो नवो
आवतो नथी, आत्मा तो सळंगपणे ते ज रहे छे. मनुष्यदेहमां जे आत्मा हतो ते ज
देवना शरीरमां आव्यो छे. रातापीळा रंग देखाय छे ते आत्मा नथी, आत्मा तो रंग
वगरनो अरूपी चैतन्यमूर्ति छे. शरीरना रंग देखीने धर्मी पोताने तेवा रंगवाळा
मानता नथी. रंग आंखथी देखाय छे, मारो आत्मा कांई आंखथी देखाय तेवो नथी.–
आम धर्मी पोताना आत्माने देहथी भिन्न जाणे छे.
अहा, जुओ तो खरा, जेम वस्त्र जुदुं, तेम शरीर आत्माथी अत्यंत जुदुं; जेम
लाकडानो के पथरनो थांभलो आत्माथी जुदो छे तेम आ शरीर पण आत्माथी जुदुं ज
छे. जेम थांभलानी क्रियाथी आत्माने धर्म नथी, तेम देहनी क्रियाथी आत्माने धर्म नथी.
जेम थांभलो अचेतन परमाणुनो पिंड छे तेम शरीर पण अचेतन परमाणुनो पिंड छे.
ज्ञानीए अहींथी ज देहमां आत्मबुद्धि छोडी दीधी छे एटले ते फरीने देहने
धारण करता नथी, अज्ञानीने तो देहमां ज आत्मबुद्धि छे तेथी देहना ममत्वने लीधे ते
फरीफरीने देहने धारण करे छे, ने संसारमां रखडे छे. ज्ञानीने एकाद बे भव कदाच
थाय, पण त्यां ते शरीरने आत्मबुद्धिथी धारण करता नथी; ते तो आत्माने ज पोतानो
मानीने आराधे छे, एटले आत्मानी आराधनाथी ते मुक्ति पामे छे.
धर्मी जाणे छे के आ शरीर तो अनित्य छे, क्षणमां पलटीने नाश पामी जाय तेवुं
छे; पण मारो आत्मा तो नित्य टकनारो छे, ते कदी नाश पामी जतो नथी; आत्मानी
पर्यायो पलटे छे पण तेनो सर्वथा नाश थतो नथी. शरीर तो जड परमाणु भेगा थईने
रचायेलुं छे, तेमां क््यांय सुख के धर्म भर्यो नथी; मारुं तो चैतन्यशरीर छे, मारा
चैतन्यशरीरमां ज ज्ञान–आनंद भर्या छे, तेमां जेटलो एकाग्र थाउं तेटला ज्ञान ने
आनंद प्रगटे छे.–आम जाणीने धर्मी पोताना आत्मामां ज एकाग्रता करे छे, तेनुं नाम
धर्म छे.
वीती गयेली बाळ के युवान अवस्थाने जीव जाणे छे, पण शरीरनी ते वीती
गयेली अवस्थाने ते पाछी लावी शकतो नथी; शरीरने वृद्धमांथी बाल के युवान बनावी
शकतो नथी, केमके ते चीज जुदी छे. आत्मा तेनुं ज्ञान करी शके पण तेने फेरवी शके नहि.
तेमज शरीर काळुं होय तो तेने आत्मा जाणे पण तेने काळमांथी धोळुं करी शके नहि.
शरीरना रंगने ज अज्ञानी पोतानो रंग माने छे, पण पोताना चैतन्यना रंगने
जाणतो नथी के जेनाथी भवनो नाश थई जाय! चैतन्यनो रंग शुं?–के अतीन्द्रिय ज्ञान
ने आनंद ते ज चैतन्यनो रंग छे, ते ज चैतन्यनुं रूप छे; सिद्ध जेवी (केवळ ज्ञान ने
केवळदर्शनरूप) एनी आंखो छे. आ सिवाय कामदेव जेवुं देहनुं रूप के हरणीयां