Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : २१ :
भाई, धननी वांछाथी तारा आत्माने तुं पापना कीचडथी मलिन न कर; अरे,
धन कमाईने पछी पूजा–प्रभावना–दानादिमां वापरीने पुण्य करशुं–एवी वांछाथी पण
धननी लोलुपता न कर. तारी वृत्तिने आत्माना हितना उद्यममां जोड ए ज सौथी ईष्ट
छे, लक्ष्मी मेळववानी लोलुपताथी तो तारो आत्मा कादव जेवा पापथी लेपाय छे.
अत्यारे पाप करीने पछी पुण्य करशुं एम माननार तो मूर्ख छे, शरीर उपर कादव
चोपडीने पछी स्नान करी लेवुं एम माननार जेवो ते मूर्ख छे. भाई, कादव चोपडीने
पछी नहावुं, एना करतां पहेलेथी ज कादवथी दूर रहेने? तेम भविष्यमां दानादि
करवाना बहाने अत्यारे तारा आत्माने पापरूपी कादवथी शा माटे लेपे छे? हा, सहेजे
तने पुण्यथी जे लक्ष्मी वगेरे मळी होय तेने तुं दान–पूजा–साधर्मीनो आदर वगेरे
सत्कार्यमां वापर.
भाई, पापभाव तो कोई प्रकारे ईष्ट नथी. लक्ष्मी वगेरे मेळववानी वृत्ति ते
पाप छे. एने तो छोड. ने राग घटाडी आत्मानुं जेम हित थाय तेम तुं कर. धनने
मेळववाना भावमां दुःख छे, धननी रक्षाना भावमांय दुःख छे ने धनने भोगववाना
भावमांय एकली अतृप्ति ने दुःख ज छे, जेमां सर्वत्र दुःख ने आकुळता छे तेमां तारुं
हित जराय नथी. तो तेने ईष्ट कोण माने? हित तो आत्मानी साधनामां छे,–जेमां
शरूआतमां पण शांति ने जेना फळमां पण मोक्षसुखनी अपूर्व शान्ति. –आवुं
मोक्षसाधन ते ज आत्मानुं ईष्ट छे. माटे तेनो ज उद्यम तुं कर–एम संतोनो ईष्टोपदेश
छे.
(ईष्टोपदेश प्रवचनमांथी: चैत्र २४९२)
मुमुक्षुने वीतरागी सन्तोनी
वाणीनी स्वाध्याय अने मनन करतां,
जाणे के ते संतोना चरण समीप
बेसीने ते संतोनी साथे तत्त्वगोष्ठी
करता होईए एवो आह्लाद,
बहुमान अने श्रुतभावना जागे छे.