Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 29 of 81

background image
: २२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
सर्वज्ञनुं ज्ञान, साधकनुं ज्ञान
बंनेनी एकजात
(पोष वद १२ नी रात्रे चर्चामां
गुरुदेवे कहेला अंतरमंथनना न्यायो)
* * *
सर्वज्ञपरमात्मा केवलज्ञानपणे परिणमीने लोकालोकने जाणे छे.
साधक धर्मात्मा सम्यग्ज्ञानपणे परिणमतो थको रागादिने जाणे छे.
हवे तेमनी सरखामणी–
ज्ञातापणे बंने सरखा छे. एटले शुं? के
जेम केवळज्ञान लोकालोकनुं जाणनार छे, करनार नथी; तेम साधक सम्यग्ज्ञानीनुं
ज्ञान पण रागनुं अने निमित्तोनुं जाणनार छे, पण करनार नथी.
जेम केवळज्ञानमां, पहेलां ज्ञान ने पछी लोकालोक एम नथी, अथवा पहेलां
लोकालोक ने पछी ज्ञान एम पण नथी, बंने एक साथे वर्ते छे अने छतां एकबीजाथी
निरपेक्षपणे वर्ते छे. तेम साधकना सम्यग्ज्ञानमां, पहेलां ज्ञान ने पछी विकल्परूप
व्यवहार एम नथी, अथवा पहेलां रागरूप व्यवहार ने पछी ज्ञान एम पण नथी, बंने
एक साथे होवा छतां, ज्ञाननुं परिणमन रागथी निरपेक्ष वर्ते छे.
अहो! केवळीनुं ज्ञान पण रागथी निरपेक्ष, ने
साधकनुं ज्ञान पण परथी निरपेक्ष. ज्ञान पूरुं ने अधूरुं एवा भेद होवा छतां
ज्ञातापणाना भावनी अपेक्षाए बंने सरखा ज छे. सर्वज्ञना ज्ञानमां जेम रागादिनुं
कर्तर्ृत्व नथी, तेम साधकना ज्ञानमां (ते ज्ञान अल्प होवा छतां–तेमां) रागनुं कर्तृत्व
नथी. फेर फक्त एटलो के केवळीने रागनुं परिणमन ज नथी, ने साधकने रागनुं
परिणमन छे, छतां ज्ञानमां तेनुं कर्तृत्व नथी; एटले ज्ञाननी जाती तो सर्वज्ञने अने
साधकने एकसरखी ज थई. चोथा गुणस्थानथी सम्यग्द्रष्टिने आवुं ज्ञान शरू थई
गयुं छे.