Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
वि वि ध व च ना मृ त
(आत्मधर्मनो चालु विभाग: लेखांक १७)
(२३१) जैनधर्मनी मूळ वस्तु–सर्वज्ञ
गुरुदेव घणीवार कहे छे के “श्रुतज्ञानीना हृदयमां सर्वज्ञ–तीर्थंकर बिराजे छे–ए
वात घणा वर्षे पहेलां सांभळेली त्यारे मने खूब गमेली” गुरुदेवने पहेलेथी सर्वज्ञता
उपर जोर घणुं, ज्यारे एमनाथी विरुद्ध विचारवाळाने सर्वज्ञनी प्रतीतमां ज वांधा.
दीक्षा पछी थोडा ज काळमां आ संबंधी मतभेद थवा लाग्या. गुरुदेव भारपूर्वक कहे छे के
जेणे सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो छे तेना अनंतभव सर्वज्ञे दीठा ज नथी, केमके एना हृदयमां
तो सर्वज्ञ बेठा छे. जेना हृदयमां सर्वज्ञ बेठा तेने अनंत भव होय नहि. सर्वज्ञना
निर्णय वगर ज्ञानस्वभावनो निर्णय थाय नहि. भगवानना मार्गनो निर्णय थाय नहि,
भगवाननी वाणीनो (शास्त्रनो) निर्णय थाय नहि. एक्केय तत्त्वनो निर्णय सर्वज्ञना
निर्णय वगर थाय नहि. सर्वज्ञनो निर्णय करतां ज्ञानस्वभावमां बुद्धि घूसी जाय छे,
त्यारे मार्ग हाथ आवे छे. जैनशासननी आ मूळभूत वस्तु छे. जुओने, समयसारमां
वक्ता अने श्रोता बंनेना आत्मामां सिद्धने स्थापीने ज शरूआत करी छे.
(२३२) हुं काळो केम?
एकवार एक बाळके आवीने गुरुदेवने पूछयुं–
गुरुदेव! आप धोळा ने हुं काळो एम केम?
गुरुदेव कहे–भाई आत्मा क््यां काळो के धोळो छे? हुं जीव ने तुं पण जीव,
आपणे बंने सरखा; बस! काळुं धोळुं तो शरीर छे, आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे.
ने हुं काळो नथी’ एम जाणीने बाळक खुशी थयो.
(२३३) हुंडी वटाववानी दुकान
सं. १९८९ मां चेलागामे मागसर सुद दशमे गुरुदेवने एक स्वप्न आव्युं.
गुरुदेव ते वखते स्थानकवासी संप्रदायमां हता.