Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : २५ :
स्वप्नमां मोटी रकमनी एक हूंडी मळी हती, पण ते हूडीं साथे स्वप्नमां एम पण
आव्युं के अहीं आ दुकाने (एटले के जे संप्रदायमां छो ते संप्रदायमां) आ हूंडी वटावी
शकाय तेम नथी, आ हूंडी वटाववा बीजी दुकान (शाहुकारनी एटले के वीतरागमार्गी
सन्तोनी) शोधवी पडशे. आवुं स्वप्न आवेलुं. (अने पछी तरत–सं. १९९१ मां
गुरुदेवे बीजी दुकान शोधी काढी ने त्यां हूंडी वटावीने तत्त्वनी मूळ रकम प्राप्त करी.)
(२३४) धर्मीनुं साचुं जीवन
धर्मना प्राण अने धर्मनुं जीवन स्वानुभूति छे.
स्वानुभूति ए धर्मात्मानुं खरूं जीवन छे.
स्वानुभूतिने जाण्या वगर धर्मात्मानुं जीवन ओळखी शकाय नहि.
(२३प) स्वसन्मुख परिणति
भाई, परसन्मुख परिणतिथी तुं अनंत काळ रखडयो ने दुःखी थयो. परम सुखथी
भरेलुं एवुं आत्मस्वरूप तेमां तुं स्वसन्मुख परिणति कर तो तने परम सुख थाय, ने तारुं
दुःख तथा भ्रमण टळे. स्वसन्मुख परिणति वडे स्वघरमां आव ने आनंदित था.
(२३६) तुं आगे बढे जा
आत्मविश्वास अने द्रढतापूर्वक तुं तारा हितमार्गमां आगळ वध्ये जा. गमे तेवा
प्रसंगे धैर्य अने वैराग्यनुं बळ टकावी राखजे. धैर्य राखीश तो मार्ग शोधवामां तारी बुद्धि
पण तने साथ आपशे. आफतथी गभरा नहि, धैर्यपूर्वक तारा हितमार्गमां आगे बढ.
(२३७) हम परदेशी पंथी....साधुजी
एकवार (आ वर्षनी मागसर वद अमासे) रात्रि चर्चामां सर्वज्ञना महिमा
संबंधी खुब भावो गुरुदेवे खोल्या....सर्वज्ञना अपार महिमानुं घोलन करतां करतां
गुरुदेवने सीमंधरनाथनुं विदेहक्षेत्र सांभरी आव्युं ने तेमनुं हृदय सभामां वारंवार
ललकारी उठयुं के–
हम परदेशी पंखी साधु जी.... आ रे देशके नांही जी...
स्वरूप साधी स्वदेश जाशुं..... रहेशुं सिद्धोनी साथ जो....
हम परदेशी पंथी साधु जी.....
(पछी तो विदेहक्षेत्रनी केटलीये वातो याद करी.)
(२३८) दरिया वच्चे रस्तो
गुरुदेवने एकवार (घणा वर्षो पहेलां) स्वप्नमां दरियो देखायो; मोटो अपार
दरियो तेमां खूब मोजां ऊछळे, पण पोताने जे