: २६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
तरफ जवानी ईच्छा थाय ते तरफ दरियाना पाणीमां पाटा (रेल्वेना पाटानी जेम पाणीमां
ज पाणीना कठण पाटा) बनी जाय, ने दरिया वच्चे मार्ग थई जाय. आ रीते उछळता
दरिया वच्चे निर्विघ्न मार्ग थई जाय. एटले के कुदरत पण मार्ग करी आपे छे.–एम थतुं.
(तेम पंचमकाळमां मिथ्यामार्गना ऊछळता दरिया वच्चे पण गुरुदेवे यथार्थ मार्ग शोधी
काढयो ने ते मार्गे गमन कर्युं. जीव तैयार थाय त्यां जगतमां मार्ग हाजर ज छे.)
दरियानुं बीजुं एक स्वप्न हमणा (पोष लगभगमां) आव्युं तेमां, एकाएक
पृथ्वी फाटीने दरिया जेवा पाणीना लोढ ऊछळ्या छे, उज्जड पृथ्वीमां खूबज पाणी वधी
रह्या छे, त्यां गुरुदेवे वेरान वच्चे एक ऊंचुं ऊंचुं सूकुं झाड जोयुं, ने तेना उपर पोते
चडी गया. त्यां तो तरत पाणीना लोढ पाछा पृथ्वीमां समाई गया.....
(भावार्थ एम भासे छे के–पंचमकाळमां विपरीत मार्ग ने कुतर्कना लोढ दरियानी
जेम ऊछळी रह्या छे....त्यां गुरुदेवे सम्यक् मार्गरूपी ऊंचुं वृक्ष जोयुं, ने तेना पर आरोहण
करीने विपरीत मार्गनां मोजा शमावीने सम्यक् मार्ग जगतमां प्रसिद्ध कर्यो. वृक्ष सूकुं हतुं
एनो आशय एम लागे छे के अत्यारे चारित्ररूपी धोखमार्गनुं लीलुंछम वृक्ष नथी पण
अविरतदशारूप सूकुं वृक्ष छे के जे वृक्षना अवलंबने सम्यक् मार्गनी रक्षा थई शके छे.)
(२३९) राग अने ज्ञाननी भिन्नता
वधु पडतो राग जगतमां नींदनीय गणाय छे, पण वधु ज्ञान ते नींदनीय नथी
गणातुं, ते तो प्रशंसनीय गणाय छे. केम के–
राग जीवनो स्वगुण नथी
ज्ञान जीवनो स्वगुण छे.
(२४०) “लोटरी लागी गई”
चर्चामां अवारनवार अनेकविध रहस्यो खोलीने गुरुदेव समजावता ने प्रमोदथी
कहेता के जुओ भाई, आ तो अंदरनी अजब वातुं छे. जेना महा भाग्य होय तेने आ
मळे तेम छे.
आ वखते, एक भाई–जे पहेलां प्रतिकूळ विचारता हता ने पाछळथी गुरुदेवनो
थोडो परिचय करतां जिज्ञासा जागी ने आ सत्य समजवा जेवुं छे एवा प्रमोद जाग्यो,–
ते भाईए पोतानो उत्साह व्यक्त करतां कह्युं–अहो साहेब! अमने तो लोटरी लागी
गई!–के आ वात सांभळवा मळी ने अंदर बेसी गई. अमे तो न्याल थई गया!
त्यारे सभाजनोने संबोधीने गुरुदेव बोल्या जुओ भाई, आ तो जे आत्मा
परीधसंसारी होय ने जेनो संसार अल्प ज बाकी होय एवा पात्र जीवने बेसी जाय
तेवी वात छे. सर्वज्ञनी आ वात जेने बेसे तेने लांबो संसार होय नहि.
अमे सौए घणा हर्षथी ए उद्गारने वधाव्या.
जय जिनेन्द्र