वीतरागभावमां जे आगळ वधे छे, ने घणो राग
घटाडवाथी जेने श्रावकपणुं थयुं छे ए श्रावकना भाव केवा
होय तेनी आ वात छे. सर्वार्थसिद्धिना देव करतांय जेनी
पदवी ऊंची, ने स्वर्गना ईन्द्र करतांय जेनुं आत्मसुख
वधारे–एवी श्रावकदशा छे ते श्रावक पण हंमेशा दान करे
छे. एकला लक्ष्मीनी लोलुपताना पापभावमां जीवन
वीतावी द्ये ने आत्मानी कांई दरकार करे नहि–एवुं जीवन
धर्मीनुं के जिज्ञासुनुं होय नहि.
पण धन वधारे वहालुं छे; पापथी भरेला सेंकडो अकार्यो करीने, समुद्र–पर्वत ने पृथ्वीमां
भ्रमण करीने, तथा अनेक प्रकारनां कष्टथी महा खेद भोगवीने दुःखथी जे धन प्राप्त करे
छे ते धन, जीवोने पुत्र करतां अने जीवन करतां पण वधारे वहालुं छे; आवा धनने
वापरवानो शुभ मार्ग एक दान ज छे, एना सिवाय धन खर्चवानो बीजो कोई उत्तम
मार्ग नथी. माटे आचार्यदेव कहे छे के अहो, भव्य जीवो! तमे आवुं दान करो.
लेशे एम दिन रात भयभीत रह्या करे,–एम पैसा माटे केटलां कष्ट सहन करे छे ने केटला
पाप करे छे? एना खातर पोतानुं किंमती जीवन पण वेडफी नांखे छे, पुत्रादिनो पण