Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : २७ :
(१३)
अनेकविध पापोथी
बचवा गृहस्थ दान करे
अहा, जेने सर्वज्ञना धर्मनो महिमा आव्यो छे,
अंतरद्रष्टिथी आत्माना धर्मने जे साधे छे, महिमापूर्वक
वीतरागभावमां जे आगळ वधे छे, ने घणो राग
घटाडवाथी जेने श्रावकपणुं थयुं छे ए श्रावकना भाव केवा
होय तेनी आ वात छे. सर्वार्थसिद्धिना देव करतांय जेनी
पदवी ऊंची, ने स्वर्गना ईन्द्र करतांय जेनुं आत्मसुख
वधारे–एवी श्रावकदशा छे ते श्रावक पण हंमेशा दान करे
छे. एकला लक्ष्मीनी लोलुपताना पापभावमां जीवन
वीतावी द्ये ने आत्मानी कांई दरकार करे नहि–एवुं जीवन
धर्मीनुं के जिज्ञासुनुं होय नहि.
श्री पद्मनंदी मुनिराज गृहस्थने दाननी प्रधानतानो उपदेश आपतां, देशव्रत–
उद्योतननी १३ मी गाथामां कहे छे के–जीवोने पुत्र करतां अने पोताना जीवन करतां
पण धन वधारे वहालुं छे; पापथी भरेला सेंकडो अकार्यो करीने, समुद्र–पर्वत ने पृथ्वीमां
भ्रमण करीने, तथा अनेक प्रकारनां कष्टथी महा खेद भोगवीने दुःखथी जे धन प्राप्त करे
छे ते धन, जीवोने पुत्र करतां अने जीवन करतां पण वधारे वहालुं छे; आवा धनने
वापरवानो शुभ मार्ग एक दान ज छे, एना सिवाय धन खर्चवानो बीजो कोई उत्तम
मार्ग नथी. माटे आचार्यदेव कहे छे के अहो, भव्य जीवो! तमे आवुं दान करो.
जुओने, अत्यारे तो जीवोने पैसा कमावा माटे केटला पाप ने जूठाणा करवा पडे
छे! दरियापारना देशमां जाय, अनेक प्रकारनां अपमान सहन करे, सरकार पैसा लई
लेशे एम दिन रात भयभीत रह्या करे,–एम पैसा माटे केटलां कष्ट सहन करे छे ने केटला
पाप करे छे? एना खातर पोतानुं किंमती जीवन पण वेडफी नांखे छे, पुत्रादिनो पण