: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : २९ :
पूर्वक वीतरागमार्गमां जे आगळ वधे छे, ने घणो राग घटाडवाथी जेने श्रावकपणुं थयुं
छे ए श्रावकना भाव केवा होय तेनी आ वात छे. सर्वार्थसिद्धिना देव करतांय जेनी
पदवी ऊंची छे, स्वर्गना ईन्द्र करतां जेनुं आत्मसुख वधारे छे एवी श्रावकदशा छे.
स्वभावना सामर्थ्यनुं जेने भान छे, विभावनी विपरीतता समजे छे अने परने पृथक्
देखे छे, एवो श्रावक रागना त्यागवडे पोतामां क्षणे क्षणे शुद्धतानुं दान करे छे ने
बहारमां बीजाने पण रत्नत्रयना निमित्तरूप शास्त्र वगेरेनुं दान करे छे.
आवुं मनुष्यपणुं पामीने, आत्मानी दरकार करीने तेना ज्ञाननी किंमत आववी
जोईए. श्रावकने स्वाध्याय–दान वगेरे शुभभावो विशेष होय छे. एने ज्ञाननो रस
होय, प्रेम होय, एटले हंमेशां स्वाध्याय करे; नवा नवा शास्त्रोनी स्वाध्याय करतां
ज्ञाननी निर्मळता वधती जाय, ने नवा नवा वीतराग भावो खीलता जाय,
अपूर्वतत्त्वनुं श्रावण के स्वाध्याय करतां एने एम थाय के अहो, आजे मारो दिवस
सफळ थयो. छ प्रकारना अंतरंगतपमां ध्यान पछी बीजो नंबर स्वाध्यायनो कह्यो छे.
श्रावकने बधा पडखांनो विवेक होय छे. स्वाध्याय वगेरेनी जेम देवपूजा वगेरे
कार्योमां पण ते भक्तिथी वर्ते छे. श्रावकने भगवान सर्वज्ञदेव प्रत्ये परम प्रीति
होय.....अहो, आ तो मारुं ईष्ट–ध्येय! एम जीवनमां ते भगवानने ज भाळे छे.
हरतां–फरतां दरेक प्रसंगमां तेने भगवान याद आवे छे. नदीना झरणांनो कलकल
अवाज आवे त्यां कहे छे के हे प्रभो! आपे पृथ्वीने छोडीने दीक्षा लीधी तेनी अनाथ
थयेली आ पृथ्वी कलरव करती रडे छे ने तेना आसुंनो आ प्रवाह छे. आकाशमां सूर्य–
चन्द्रने देखतां कहे छे के प्रभो! आपे शुक्लध्यान वडे घातीकर्मोने ज्यारे भस्म करी
नाख्या त्यारे तेना तणखां आकाशमां उडया, ते तणखा ज आ सूर्य–चन्द्ररूपे ऊडता
देखाय छे. अने ध्यानाग्निमां भस्म थईने ऊडेला कर्मना दळीया आ वादळां रूपे हजी
ज्यांंत्यां घूमी रह्यां छे.–आवी उपमावडे भगवानना शुक्लध्यानने याद करे छे ने पोते
तेनी भावना भावे छे. ध्याननी अग्नि, ने वैराग्यनो वायरो, तेनाथी ला लागी ने कर्मो
बळी रह्या छे तेना धूमाडा ऊडे छे. आ रीते सर्वज्ञदेवने ओळखीने श्रावकने एनी
भक्तिनो रंग लाग्यो छे. तेनी साथे गुरुनी उपासना, शास्त्रनी स्वाध्याय वगेरे पण
होय छे. शास्त्रो तो कहे छे के अरे, कान वडे जेणे वीतरागी सिद्धांतनुं श्रवण कर्युं नहि ने
मनमां तेनुं चितन कर्युं नहि, तेने कान अने मन मळ्या ते न मळ्या बराबर ज छे.
आत्मानी दरकार नहि करे तो कान ने मन बंने गुमावीने एकेन्द्रियादिमां चाल्यो जशे.
काननी सफळता एमां छे के सत्पात्रदानमां तेनो उपयोग थाय. भाई, अनेक प्रकारनां
पाप करीने तें धन भेगुं कर्युं. , तो हवे परिणाम पलटावीने तेनो एवो उपयोग कर के
जेथी तारां पाप धोवाय ने तने उत्तम