Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ३१ :
सगडीमां नांख्या ने भडको थयो एटले तापवा लाग्यो....त्यां तो मा आवी, छोकरो कहे
बा, जो....में केवी सगडी करी! जोतावेंत मा समजी गई के अरे, आणे तो पांचहजार रूा.
नो भडको कर्यो!! एने एवो क्रोध चडयो ने छोकराने एटलो बधो मार्यो के छोकरो मरी
गयो जुओ, पुत्र करतांय धन केटलुं वहालुं छे! बीजो एक बनाव; एक भरवाडण दूध
वेचीने तेना त्रण रूपिया लईने पोताने गाम जती हती; दुष्काळना दिवसो हता;
रस्तामां लूटारुं मळ्‌या. बाईने बीक लागी के आ लोको मारा रूपिया पडावी लेशे एटले
ते रोकडा त्रण रूपिया पेटमां गळी गई; पण लूटारुओए ते जोयुं ने बाईने मारी
नांखीने तेना पेटमांथी रूपिया काढया. जुओ,–आ क्रूरता! आवा जीवो दोडीने नरके न
जाय तो बीजे क््यां जाय? आवा तीव्र पापनां परिणाम तो जिज्ञासुने होय ज नहि.
घणा लोकोने तो लक्ष्मी रळवानी धून आडे पूरुं खावानो वखत न मळे, देश छोडीने
अनार्य जेवा परदेशमां जाय, ज्यां भगवानना दर्शन पण न मळे, सत्संग पण न मळे;
अरे भाई! जेने खातर तें आटलुं कर्युं ते लक्ष्मीनो कंईक सदुपयोग कर. प०–६० वर्ष
संसारनी मजुरी करीने, मरवा पड्यो होय, मरतां मरतां छेल्लछेडीए बची जाय ने
पथारीमांथी ऊठे तोपण पाछो त्यां ने त्यां पापकार्यमां जोडाई जाय छे.–पण एम नथी
विचारतो के अरे, जींदगी आखी धन रळवामां गूमावीने ने मफतनां पाप बांध्या, छतां
आ धन तो कांई साथे आववानुं नथी, माटे मारा हाथे राग घटाडीने एनो कंईक
सदुपयोग करुं ने कंईक आत्मानुं हित थाय एवो उद्यम करुं देव गुरु–धर्मनो उत्साह,
सत्पात्रदान, तीर्थयात्रा वगेरेमां राग घटाडीश ने लक्ष्मीनो उपयोग करीश तोपण तने
अंतरमां एम सन्तोष थशे के जीवनमां आत्माना हित माटे में कंईक कर्युं छे; बाकी
एकला पापमां ज जीवन गाळीश तो तारी लक्ष्मी पण निष्फळ जशे ने मरण टाणेय तुं
पस्ताईश के अरे, जीवनमां आत्माना हित माटे कांई न कर्युं. अशांतिपणे देह छोडीने
कोण जाणे क््यां जईने उतारा करीश? माटे हे भाई! छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने झुलता
मुनिराजे करुणा करीने तारा हितने माटे आ श्रावकधर्मनो उपदेश आप्यो छे. तारी
पासे गमे तेटला धनना ढगला होय, पण तेमांथी तारुं केटलुं?–के तुं दानमां वापर
तेटलुं तारुं. राग घटाडीने दानादि सत्कार्यमां वपराय एटलुं ज धन सफळ छे. वारंवार
सत्पात्र दानना प्रसंगथी, मुनिवरो धर्मात्माओ वगेरे प्रत्ये बहुमान, विनय, भक्ति
वगेरे प्रकारे तने धर्मना संस्कार रह्या करशे, ने ए संस्कार परभवमांय साथे आवशे.–
लक्ष्मी कांई परभवमां साथे नहि आवे. माटे कहे छे के संसारना कार्योमां (विवाह,
भोगोपभोग वगेरेमां) तुं लोभ करतो हो तो भले कर, पण धर्मकार्योमां तुं लोभ
करीश नहि, त्यां तो उत्साहपूर्वक वर्तजे. जे पोताने धर्मी–श्रावक कहेवडावे छे पण