Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ३५ :
उत्पाद–व्यय आवतां नथी.
४२. प्रश्न:– स्वभावनो नाश थाय छे के नहि?–शा माटे?
उत्तर:– जे वस्तुनो जे स्वभाव होय तेनो कदी नाश थाय नहि; जो स्वभावनो
नाश थाय तो वस्तुनो ज नाश थाय, केमके वस्तु अने वस्तुनो स्वभाव जुदा नथी.
जेमके ज्ञान ते आत्मानो स्वभाव छे, जो ज्ञाननो नाश थाय तो आत्मानो ज नाश
थाय; केमके ज्ञान अने आत्मा जुदा नथी.
४३. प्रश्न:– कार्मणवर्गणा अने कार्मण शरीरमां शुं फेर छे?
उत्तर:– कार्मणवर्गणाना जे परमाणुओ छे तेओ हजु कर्मरूपे थया नथी पण
कर्मरूपे थवानी तेनामां लायकात छे. अने जे परमाणुओ आठ कर्मरूपे परिणम्या छे ते
कर्मोना समूहने कार्मणशरीर कहेवामां आवे छे.
४४. प्रश्न:– अरिहंतने कया कर्मो बाकी छे?–शा माटे?
उत्तर:– अरिहंतने वेदनीय, आयु, नाम अने गोत्र ए चार अघातिकर्मो बाकी
छे, केमके हजी तेमने ते प्रकारनो उदयभाव बाकी छे.
४प. प्रश्न:– पहेलां केवळज्ञान थाय के केवळदर्शन–शा माटे?
उत्तर:– केवळज्ञान अने केवळदर्शन एक साथे ज (एक ज समये) थाय छे.
केमके पूरी दशामां उपयोगमां क्रम पडतो नथी; ज्ञान ने दर्शन बंने सळंग वर्ते छे.
४६. प्रश्न:– धर्मद्रव्य चाले त्यारे तेने कोण निमित्त थाय?
उत्तर:– धर्मद्रव्य स्वभावथी ज स्थिर छे, ते कदी चालतुं नथी.
४७. प्रश्न:– धर्मद्रव्य केटला द्रव्योने स्थिर थवामां निमित्त थाय?
उत्तर:– धर्मद्रव्य स्थिर थवामां निमित्त थतुं नथी; पण जीव अने पुद्गलद्रव्य ज्यारे
गति करे त्यारे तेने गतिमां धर्मद्रव्य निमित्त कहेवाय छे. स्थितिमां निमित्त अधर्मद्रव्य छे.
४८. प्रश्न:– संसारी जीवोने केटला प्रकारनां शरीर होय छे?
उत्तर:– संसारी जीवोमां कुल पांचप्रकारना शरीर होय छे–औदारिक, वैक्रियिक,
आहारक, तैजस अने कार्मण. तेमांथी कोई एक जीवने एक साथे वधुमां वधु चार, ने
ओछामां ओछा बे शरीर होय छे. एक अथवा पांच शरीर कोईने होतां नथी.
४९. प्रश्न:– बे शरीर कया जीवने होय?
उत्तर:– एक भवमांथी बीजा भवमां गति करता जीवने घणो ज अल्पकाळ
(एक, बे के त्रण समय) कार्मण अने तैजस ए बे ज शरीर होय छे.
प०. प्रश्न:– चार शरीर कया जीवने होय?
उत्तर:– आहारकब्धिसंपन्न छठ्ठा गुणस्थानवर्ती मुनिने (वैक्रियिक सिवायना)
चार शरीर होय छे.
प१. प्रश्न:– जीवनुं परमार्थ शरीर क्युं?