: ३६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
उत्तर:– जीवनुं परमार्थ शरीर ‘ज्ञान’ छे. जीवनुं ज्ञानशरीर जीवथी कदी जुदुं न
पडे. पांच शरीरो पुद्गलना बनेला अचेतन छे, ते खरेखर जीवनां नथी.
प२. प्रश्न:– ‘काळो रंग’ ते अनुजीवी गुण छे के प्रतिजीवी गुण?
उत्तर:– ‘काळो रंग’ ते गुण नथी पण गुणनी पर्याय छे. पुद्गल द्रव्यमां
रंगनामना गुणनी काळी हालत छे तेने काळो रंग कहेवाय छे. रंग ते पुद्गलनो
अनुजीवी गुण छे.
प३. प्रश्न:– द्रव्यमां उत्पाद–व्यय–धु्रव कई रीते छे?
उत्तर:– द्रव्यमां नवी अवस्था उपजे छे, जुनी अवस्थानो नाश थाय छे, अने
वस्तुपणे ते कायम टकी रहे छे–ए रीते द्रव्यमां उत्पाद–व्यय–धु्रव छे; जेमके जीवद्रव्यमां
सिद्धदशानुं उत्पन्न थवुं, संसारदशानो नाश थवो अने जीवपणे तेनुं टकी रहेवुं–ए
जीवद्रव्यना उत्पाद–व्यय–धु्रव छे.
प४. प्रश्न:– ‘एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई न करी शके’–ए वात खरी छे? केम?
उत्तर:– हा, एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई न करी शके ए वात खरी छे, केमके दरेक
वस्तुमां अगुरुलघुत्व नामनी शक्ति रहेली छे, तेथी कोई एक पदार्थ अन्य पदार्थरूपे
परिणमतो नथी, ने तेनुं कांई करतो नथी. वळी वस्तुमां अस्ति–नास्ति धर्म छे, दरेक वस्तु
पोताना स्वरूपे छे अने परना स्वरूपे नथी, एटले के दरेक वस्तु जुदी जुदी स्वतंत्र छे.
तेथी कोई वस्तु एक बीजानुं कांई पण करी शकती नथी. दरेक वस्तुमां पोतामां ज पोतानुं
कार्य करवानी शक्ति छे. द्रवत्व नामनी शक्ति दरेक पदार्थमां छे, ते शक्तिथी दरेक वस्तुनुं
कार्य स्वयं पोतपोताथी थया करे छे; एक वस्तु बीजी वस्तुनुं कार्य करती नथी.
पप. प्रश्न:– बधा जीवोने दर्शनपूर्वक ज ज्ञान (अर्थात् पहेलां दर्शन अने पछी
ज्ञान) होय छे’ ए वात बराबर छे?
उत्तर:– ना, बधा जीवोने माटे तेम नथी. अपूर्ण ज्ञानवाळा जीवने दर्शनपूर्वक ज
ज्ञान होय छे, परंतु जेमने पूर्णज्ञान (केवळज्ञान) प्रगटी गयुं होय तेने तो दर्शन अने
ज्ञान बंने एक साथे ज होय छे.
प६. प्रश्न:– ‘मुनिराज ध्यानस्थ बेठा छे’ आ प्रसंगे छए द्रव्यनी क्रियानुं टूंक
वर्णन करो.
उत्तर:– (१) ध्यानस्थ मुनिराजनो आत्मा ते वखते परम आनंदमां लीन छे.
अर्थात् तेमने शुद्ध ज्ञानक्रिया वर्ते छे, तेमने मोक्षमार्गनी क्रिया वर्ते छे.–आ जीवद्रव्यनी
क्रिया (२) जड शरीरना परमाणुओनी क्रिया ते वखते स्थिर रहेवा लायक छे, ते
पुद्गलनी क्रिया (३) अधर्मास्तिकाय द्रव्य ते जीव अने परमाणुओने स्थिर रहेवामां
निमित्तरूप छे; (४) काळद्रव्य परिणमनमां निमित्त छे;(प) आकाश द्रव्य ते जग्या
आपवामां निमित्त छे, अने (६) धर्मास्तिकाय द्रव्यनी त्यां हाजरी छे पण जीवमां
गतिक्रिया न होवाथी ते वखते धर्मा–