: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ३७ :
स्तिकाय निमित्त नथी.
प७. प्रश्न:– ध्यानदशा वखते आत्मामां कई कई जातनी पर्याय होय?
उत्तर:– अर्थपर्याय अने व्यंजनपर्याय बंने होय छे.
प८. प्रश्न:– अरूपी वस्तुने आकृति होय?
उत्तर:– हा, प्रदेशत्व गुणने लीधे दरेक वस्तुने पोतानी आकृति होय ज; तेने
व्यंजन पर्याय कहेवाय छे. आकृति वगरनी कोई वस्तु होई शके नहि.
प९. प्रश्न:– धर्म–अधर्म–आकाश अने काळ ए चार द्रव्यने स्वभावव्यंजनपर्याय
छे के विभावव्यंजनपर्याय छे?
उत्तर:– ए चारे द्रव्योने सदाय स्वभाव व्यंजनपर्याय ज होय छे, तेनी पर्यायमां
कदी विकार थतो नथी, संसारीजीवने अने स्कंधना परमाणुओने ज विभावव्यंजन
पर्याय होय छे.
६०. प्रश्न:– अगुरुलघुत्वगुण प्रतिजीवी छे के अनुजीवी?
उत्तर:– अगुरुलघुत्वगुण बे प्रकारना छे; तेमां जे सामान्य अगुरुलघुगुण छे ते
अनुजीवी छे अने जे जीवनो विशेष अगुरुलघुगुण छे ते प्रतिजीवी छे.
६१. प्रश्न:– बंने अगुरुलघु गुणमां अभावसुचक ‘अ’ आवे छे छतां बंनेमां
भेद केम?
उत्तर:– सामान्य अगुरुलघुगुण तो बधी वस्तुओमां त्रिकाळ छे, ते गुण कोई
बीजाना अभावनी अपेक्षा राखतो नथी माटे ते अनुजीवी छे अने विशेष
अगुरुलघुगुण तो गोत्रकर्मनो अभाव थतां सिद्धदशामां प्रगटे छे–कर्मना अभावनी
अपेक्षा राखतो होवाथी ते प्रतिजीवी गुण छे. (जेमां ‘अ’ आवे तेने प्रतिजीवी गुण
कहेवो एवो कांई नियम नथी)
६२. प्रश्न:– मन ज्ञान करतां अटकावे छे के मदद करे छे?
उत्तर:– मन तो जड छे, ते ज्ञानथी जुदुं छे तेथी ते ज्ञान करवामां मदद पण न
करे अने अटकावे पण नहि.
६३. प्रश्न:– ‘आत्मा देह छोडीने चाल्यो गयो’–त्यारे अहींथी छ द्रव्योमांथी
केटला द्रव्यो गया?
उत्तर:– एक तो जीव अने तेनी साथे कार्मण तथा तैजस शरीरना रजकणो;
एटले के जीव अने पुद्गल द्रव्यो गयां. जीव अने पुद्गल द्रव्य सिवायनां चारे द्रव्यो तो
सदा स्थिर छे, तेओमां कदी क्षेत्रांतर थतुं ज नथी.
६४. प्रश्न:– ‘शरीरने छोडीने जीवना प्रदेशोनुं बहार फेलावुं तेने समुद्घात कहे
छे’–आ व्याख्या बराबर छे?
उत्तर:– ना, आ व्याख्या बराबर नथी. शरीरने छोडीने बधा आत्मप्रदेश बहार
नीकळी जाय तो मरण कहेवाय, समुद्घातमां तो मूळ शरीरने छोडया वगर आत्मप्रदेशो
बहार फेलाय छे.
६प. प्रश्न:– राग–द्वेष आत्माना छे के जडना छे?