: ३८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
उत्तर:– राग–द्वेषभाव आत्मानी पर्यायमां थाय छे ते अपेक्षाए तो ते आत्माना
छे, परंतु रागद्वेषभाव ते शुद्ध आत्मानुं स्वरूप नथी–तेथी आत्मानुं शुद्धस्वरूप
बताववा माटे तेने जडना पण कहेवाय छे.
६६. प्रश्न:– ईन्द्रिय सिवाय जीव होई शके के नहि?
उत्तर:– हा, सिद्धदशामां अनंत जीवो छे तेओने ईन्द्रिय के शरीर नथी; तेमज
जीव ज्यारे एक गतिमांथी बीजी गतिमां गमन (विग्रह गति) करे छे त्यारे पण तेने
ईन्द्रिय के स्थूळ शरीर होतां नथी; अने खरी रीते तो बधां ज जीवो ईन्द्रिय अने शरीर
वगरनां ज छे, ईन्द्रिय अने शरीर तो जड छे, ज्ञानस्वरूप आत्मा तेनाथी जुदो ज छे.
व्यवहारथी जीवने ओळखवा माटे एकेन्द्रिय वगेरे नाम आप्यां छे; ते एम सूचवे छे के
ते जीवने ज्ञानमां ते प्रकारनो उघाड छे.
६७. प्रश्न:– जड अने पुद्गलमां शुं फेर छे?
उत्तर:– जडनुं लक्षण अचेतनपणुं छे तेथी ‘जड’ कहेतां तेमां जीव सिवायना
पांचे द्रव्योनो समावेश थई जाय छे अने पुद्गलनुं लक्षण रूपीपणुं छे तेथी पुद्गल
कहेतां एकलुं पुद्गल द्रव्य लक्षमां आवे छे; जड तो रूपी पण होय अने अरूपी पण
होय, परंतु पुद्गल तो रूपी ज होय छे.
६८. प्रश्न:– सत्देवनुं टूंकामां टूकुं स्वरूप शुं?
उत्तर:– सर्वज्ञता; ज्यां सर्वज्ञता होय त्यां वीतरागता होय ज.
६९. प्रश्न:– ‘अर्हंतदेव’ अने ‘स्वर्गना देव’ ए बे देवोमां शुं फेर छे?
उत्तर:– अर्हंतदेव पूजनीक छे. तेओ पूर्णज्ञानी छे, विकार रहित छे, जीवनमुक्त
छे, भवरहित छे. पण स्वर्गना देव तो अपूर्णज्ञानवाळा छे, विकार सहित छे, संसारी
छे. भवसहित छे; अर्हंतप्रभुने देवपणुं गुणना कारणे छे तेथी पूजनीक छे, अने स्वर्गनुं
देवपणुं ते तो पुण्यनुं फळ छे. तेथी ते देवपद पूजनीक नथी स्वर्गना देवोमां जोके केटलाक
सम्यग्द्रष्टि पण छे परंतु पंचपरमेष्ठीरूप देवपणुं स्वर्गमां होतुं नथी.’
७०. प्रश्न:– कुदेव कुगुरुनी भक्ति करवाथी जीवने शुं लाभ थाय?
उत्तर:– कुदेव–कुगुरुनी भक्ति करवाथी जीवने कांई ज लाभ न थाय, उलटुं
मिथ्यात्वना पोषणथी संसारभ्रमण थाय, ने जीवना गुण हणाय.
७१. प्रश्न:– अगृहीत मिथ्यात्वनुं फळ शुं? अने गृहीत मिथ्यात्वनुं फळ शुं?
उत्तर:– बंनेनुं फळ संसार ज छे; अगृहित मिथ्यात्व अनादिथी चाल्युं आवे छे,
गृहीत मिथ्यात्व नवुं ग्रहण करेलुं छे. अने ते गृहीत मिथ्यात्व अगृहीत मिथ्यात्वने
पोषण आपे छे.
७२. प्रश्न:– मिथ्याज्ञान अने सम्यग्ज्ञान वच्चे शुं तफावत छे?
उत्तर:– मिथ्याज्ञान ते संसारनुं कारण छे,