: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ३९ :
सम्यग्ज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे. अनादिथी जीवने मिथ्याज्ञान छे, जे जीव साची समजण
करे तेने सम्यग्ज्ञान थईने अल्प काळमां मोक्ष थाय मिथ्याज्ञानी जीव सदाय ‘पुण्यथी
धर्म थाय अने शरीरादिनुं हुं करी शकुं’ एम माने छे पण सम्यग्ज्ञानी जीव कदापी
‘पुण्यथी धर्म थाय के शरीरादिनी क्रिया हुं करी शकुं’ एम मानता नथी; आ रीते
मिथ्याज्ञान अने सम्यग्ज्ञान वच्चे आकाश–पाताळ जेवडो महान तफावत छे.
७३. प्रश्न:– जेने व्यवहार चारित्र होय तेने गृहीत मिथ्यात्व होय के नहि?
उत्तर:– जेने व्यवहार चारित्र होय तेने गृहीत मिथ्यात्व तो होय ज नहीं;
अगृहीत–मिथ्यात्व कोईने होय ने कोईने न होय.
७४. प्रश्न:– गृहीत मिथ्यात्व छूटवाथी सम्यग्दर्शन थई शके के नहि?
उत्तर:– बधा प्रकारनुं मिथ्यात्व छूटे त्यारे ज सम्यक्त्व थाय; फकत गृहीत
मिथ्यात्व छूटवाथी ज सम्यग्दर्शन थई जतुं नथी. पहेलां गृहीत मिथ्यात्व छोडीने जो
आत्मानी साची समजण वडे अगृहीत मिथ्यात्वने पण छोडे तो ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
गृहीत मिथ्यात्व छोडीने पण जो पराश्रयबुद्धिथी साचा देव–गुरु–शास्त्र तरफ ज रोकाई
जाय ने स्वाश्रितद्रष्टिथी स्वसन्मुख थई पोताना आत्मानी साची समजण न करे तो
तेने सम्यग्दर्शन थतुं नथी. अने अगृहीत मिथ्यात्व टळतुं नथी. गृहीत अने अगृहीत
बंने मिथ्यात्व टाळे तेने ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
७प. प्रश्न:– पहेलां गृहीत मिथ्यात्व टळे के अगृहीत?
उत्तर:– पहेलां गृहीत मिथ्यात्व टाळ्या वगर अगृहीत मिथ्यात्व टळे नहि.
कोईने गृहीत अने अगृहीत बंने साथे पण टळी जाय; जेने गृहीत मिथ्यात्व होय तेने
अगृहीत मिथ्यात्व पण होय ज.
७६. प्रश्न:– एक जीव मिथ्यात्व सहित शुभ क्रियामां वर्ते छे अने एम माने छे
के मने आ क्रियाथी धर्म थाय छे; ते ज वखते बीजो जीव क्रोधथी लडाई लडे छे अने तेने
आत्मानी ओळखाण छे, तो आ बे जीवोमांथी ते वखते कोने वधारे बंधन थतुं हशे?
उत्तर:– जे जीव शुभरागनी क्रियाथी धर्म माने छे ते जीवने मिथ्यात्वना पाप
सहित वधारे बंधन थाय छे केमके मिथ्यात्व ज महा बंधनुं कारण छे. ज्ञानी जीवने
लडाई वखते पण मिथ्यात्वनुं महापाप तो बंधातुं ज नथी; साची श्रद्धा होवाने लीधे
लडाई वखते पण तेने आत्मभान वर्ते छे ने संसार तूटतो जाय छे. अज्ञानीने विपरीत
श्रद्धा होवाथी शुभराग वखते पण ते संसार वधारी रह्यो छे. साची समजण वगर
आत्माने कोई रीते लाभ थाय नहि अने कर्मबंधन तूटे नहि मिथ्यात्व सेवनथी
आत्माने जे नुकशान थाय छे तेटलुं नुकशान बीजी कोई रीते थतुं नथी.
७७. प्रश्न:– आ शरीर जीवने दुःखी