: ४० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
करे छे” आ वाक्यमां कांई भूल छे?
उत्तर:– ते वाक्य खोटुं छे खरेखर शरीर जीवने दुःखी करतुं नथी. पण शरीर
प्रत्येनो जीवनो मोहभाव छे ते ज जीवने दुःखी करे छे. जीवने सुख–दुःख पोताना ज
भावथी थाय छे, पण शरीरथी सुख–दुःख थतुं नथी.
७८ प्रश्न:– रागद्वेष वधारे नुकशान करे छे के राग–द्वेषने पोतानां मानवा ते?
उत्तर:– राग–द्वेषने पोतानां मानवा ते ऊंधी मान्यता ज वधारे नुकशाननुं
कारण छे. राग–द्वेष ते तो चारित्रनो दोष छे अने राग–द्वेष ते तो चारित्रनो दोष छे
अने राग–द्वेषने पोतानां मानवा ते श्रद्धानो दोष छे, श्रद्धानो दोष सर्वदोषनुं मूळ छे.
मिथ्यात्व टळतां अनंता राग–द्वेष टळी जाय छे.
७९. प्रश्न:– एक जीव एम माने छे के....‘मारा उपदेश वडे हुं बीजाने धर्म
पमाडी शकुं; तो ते जीव सम्यग्द्रष्टि छे के मिथ्याद्रष्टि?
उत्तर:– ते मिथ्याद्रष्टि छे, केम के हुं परजीवोने समजावी शकुं एम तेनी मिथ्या
मान्यता छे; एक जीव बीजा जीवने कंई करी शकतो नथी छतां ते परनुं कर्तृत्व माने छे
तथा उपदेशना जड शब्दोनुं कर्तापणुं माने छे–तेथी एम नक्की थाय छे के ते मिथ्याद्रष्टि
ज छे. ज्ञानी उपदेश आपे तेमां तेने कर्तृत्वबुद्धि होती नथी.
८०. प्रश्न:– साची विद्या कई छे?
उत्तर:– स्व–परना भेदज्ञानरूप विद्या ते ज साची विद्या छे. ने ते विद्या मोक्षनुं
कारण थाय छे.
विद्यार्थी बंधुओ,
जैनदर्शननुं आवुं तत्त्वज्ञान शीखवा माटे सोनगढना धार्मिक शिक्षण वर्गमां
अभ्यास करो.
जय जिनेन्द्र
जैनदर्शन शिक्षणवर्ग
उनाळानी रजाओ दरमियान सोनगढमां जैन विद्यार्थीओ
माटेनो धार्मिक शिक्षणवर्ग ता. १प मे १९६६ वैशाख वद १० (बीजी)
रविवारथी शरू थशे अने ता. १प जुन १९६६ जेठ सुद १प शुक्रवार
सुधी चालशे. जे विद्यार्थीओ शिक्षणवर्गमां आववा ईच्छता होय तेमणे
नीचेना सरनामे सूचना मोकली देवी अने वर्गमां समयसर आवी जवुं.
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)