करेल, ते अनुसार अंक १७७ थी १८० सुधीमां पांच
चित्रोनी कथा आवी गई छे. भगवान ऋषभदेवनो जीव
भोगभूमिमां बे मुनिओना उपदेशथी सम्यक्त्वनी प्राप्ति
करे छे–तेनुं भावभीनुं द्रश्य छठ्ठा चित्रमां छे. पुराणोनो
आ प्रसंग मुमुक्षुने अति प्रिय छे. आ प्रसंग तो पूर्वना
सातमा भवमां बन्यो, परंतु तेनी कथानो संबंध पूर्वना
दशमा भवथी शरू थाय छे; तेथी आपणे अहीं ऋषभदेव
प्रभुना दश भवोनी कथा आपीशुं. ऋषभदेवनो जीव पूर्वे
जैनधर्मनी प्रीति थई,–अव्यक्तपणे धर्मनां बीज रोपाया;
पछी आठमा भवे (वज्रजंघराजाना भवमां) मुनिवरोने
आहारदान दीधुं; त्यांथी भोगभूमिमां अवतर्या; त्यां ते
सातमा भवमां बे मुनिवरोना उपदेशथी सम्यक्त्व ग्रहण
कर्युं. पांचमा भवे विदेहक्षेत्रमां मुनिदशा प्रगट करी; त्रीजा
भवे विदेहक्षेत्रे पुंडरगीरी नगरीमां वज्रनाभी चक्रवर्ती
थया ने दीक्षा धारण करीने तीर्थंकर प्रकृति बांधी; त्यांथी
सर्वार्थसिद्धिमां जईने पछी छेल्लो ऋषभअवतार थयो.
आधारे करवामां आवशे.–जे मात्र बाळकोने ज नहि पण
आत्मधर्मना मोटा–नाना समस्त पाठकोने गमशे अने
धार्मिक आराधनानी प्रेरणा आपशे.