Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
भगवान ऋषभदेव
(तेमना छेल्ला दश अवतारनी कथा)
(ब्र. ह. जैन)
(सोनगढ जिनमंदिरमां जे ऐतिहासिक चित्रो
कोतरेला छे, तेनो परिचय आत्मधर्ममां आपवानुं शरू
करेल, ते अनुसार अंक १७७ थी १८० सुधीमां पांच
चित्रोनी कथा आवी गई छे. भगवान ऋषभदेवनो जीव
भोगभूमिमां बे मुनिओना उपदेशथी सम्यक्त्वनी प्राप्ति
करे छे–तेनुं भावभीनुं द्रश्य छठ्ठा चित्रमां छे. पुराणोनो
आ प्रसंग मुमुक्षुने अति प्रिय छे. आ प्रसंग तो पूर्वना
सातमा भवमां बन्यो, परंतु तेनी कथानो संबंध पूर्वना
दशमा भवथी शरू थाय छे; तेथी आपणे अहीं ऋषभदेव
प्रभुना दश भवोनी कथा आपीशुं. ऋषभदेवनो जीव पूर्वे
दशमा भवे महाबल राजा हतो, ते भवमां तेने
जैनधर्मनी प्रीति थई,–अव्यक्तपणे धर्मनां बीज रोपाया;
पछी आठमा भवे (वज्रजंघराजाना भवमां) मुनिवरोने
आहारदान दीधुं; त्यांथी भोगभूमिमां अवतर्या; त्यां ते
सातमा भवमां बे मुनिवरोना उपदेशथी सम्यक्त्व ग्रहण
कर्युं. पांचमा भवे विदेहक्षेत्रमां मुनिदशा प्रगट करी; त्रीजा
भवे विदेहक्षेत्रे पुंडरगीरी नगरीमां वज्रनाभी चक्रवर्ती
थया ने दीक्षा धारण करीने तीर्थंकर प्रकृति बांधी; त्यांथी
सर्वार्थसिद्धिमां जईने पछी छेल्लो ऋषभअवतार थयो.
आ बधा प्रसंगोनुं आलेखन अहीं ‘महापुराण’ ना
आधारे करवामां आवशे.–जे मात्र बाळकोने ज नहि पण
आत्मधर्मना मोटा–नाना समस्त पाठकोने गमशे अने
धार्मिक आराधनानी प्रेरणा आपशे.
–सं.