Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
स्वयंबुद्ध मंत्रीनी प्रशंसा करी.
एकवार स्वयंबुद्ध मंत्री मेरूपर्वत उपरना अकृत्रिम चैत्यालयोमां बिराजमान
जिनप्रतिमाओनी भक्तिपूर्वक वंदना करवा माटे गयो; त्यां अनादिनिधन, हंमेशा
प्रकाशीत अने देवोथी पण पूज्य एवा शाश्वत जिनमंदिरो देखीने तेने घणो आनंद
थयो, अने तेमां बिराजमान रत्नमय निजबिंबोनी प्रदक्षिणा तथा भक्तिपूर्वक वारंवार
नमस्कार करीने पूजा करी; पछी थोडीवार त्यां बेठो.
एवामां ते स्वयंबुद्ध मंत्रीए पूर्व विदेहक्षेत्रथी आवेला बे मुनिवरोने देख्या...ए
बंने मुनिवरो युगन्धर तीर्थंकरना समवसरणरूपी सरोवरना मुख्य हंस हता. मंत्रीए
अतिशय भक्तिथी प्रणाम अने पूजन कर्या बाद ते मुनिवरोने पोतानो मनोरथ पूछयो;
‘हे भगवान! आप अवधिज्ञानरूपी नेत्रवडे जगतने जाणनारा छो तेथी हुं मारा
मननी वात आपने पूछुं छुं. हे स्वामी! मारा राजा महाबल छे ते भव्य छे के अभव्य?
जिनेन्द्रदेवे कहेला सत्यमार्गनुं स्वरूप मारा वचन प्रमाणे जे रीते ते स्वीकारे छे ते ज
रीते तेनुं सम्यक् श्रद्धान ते करशे के नहीं?–ए वात हुं आप बंने संतोना अनुग्रहथी
जाणवा मांगुं छुं, माटे कृपा करीने कहो.”
मंत्रीए आ प्रमाणे पूछयुं त्यारे आदित्यगति नामना अवधिज्ञानी मुनिराजे
कह्युं: “हे भव्य! तारो राजा भव्य ज छे, अने ते तारा वचन अनुसार श्रद्धा करशे.
एटलुं ज नहि, दसमा भवे ते तीर्थंकर पद पामशे; आ जंबुद्वीपना भरतक्षेत्रनी हवेनी
चोवीसीमां ते ऋषभदेव नामना तीर्थंकर थशे” “वळी हे मंत्री! सांभळ! आजे ज तारा
राजाए बे स्वप्नो जोयां छे; पहेलां स्वप्नमां तेणे एम जोयुं छे के त्रण दुष्ट मंत्रीओए
बळात्कारपूर्वक तेने भारे कीचडमां फसावी दीधो छे, ने तुं ते दुष्ट मंत्रीओने दूर करीने,
तेने कीचडमांथी बहार काढे छे ने सिंहासन उपर बेसाडीने तेनो अभिषेक करे छे. तथा
बीजा स्वप्नमां ते राजाए अग्निनी तीव्र ज्योतने क्षणेक्षणे क्षीण थती देखी छे. आ बंने
स्वप्नो देखीने ते राजा तारी प्रतीक्षा करी रह्यो छे. पोते कांई पूछया पहेलां ज तारा
मुखेथी बंने स्वप्नो अने तेनुं फळ सांभळीने ते राजाने विस्मय थशे, अने ते
निःसंदेहपणे तारां वचनोनो स्वीकार करशे. जेम तरस्यो चातक वरसादना पाणीमां
अतिशय प्रेम करे अने जन्मान्ध पुरुष अंधापो हरनारी औषधिमां अतिशय प्रेम करे,
तेम ते महाबल राजा तारी पासेथी प्रबोध पामीने समीचीन जैनधर्ममां अतिशय प्रेम
करशे. तेणे जे पहेलुं स्वप्न देख्युं छे ते तेना आगामी भवनी स्वर्गनी विभूतिनुं सूचक
छे; अने बीजुं स्वप्न तेना आयुष्यनी अतिशय क्षीणतानुं सूचक छे. ए निश्चित छे के
हवे तेनुं आयुष्य एक महिनानुं ज बाकी रह्युं छे. माटे हे भद्र! तेना कल्याण माटे शीघ्र