Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ४७ :
वांचको
साथे
वातचीत
साधर्मी पाठकोना विचारोने व्यक्त करतो आ विभाग
जिज्ञासुओने गम्यो छे; आ विभाग द्वारा पाठक अने संपादक वच्चेनो
सीधो संपर्क आत्मधर्मने विकसाववामां सहायरूप थशे. बालविभागना
अनेक सभ्योना प्रश्नो आवेला ते पण आ विभागमां समावी दीधा छे.
बाळकोना हृदयमांथी ऊठता प्रश्नतरंगो पण केवा प्रेरक होय छे–ते अहीं
देखाशे. आ वखते, छेल्ला बे मासमां आवेला लगभग बधा प्रश्नो लीधा
छे, हवे पछी खास महत्वना प्रश्नोने ज स्थान आपी शकीशुं. –सं.
गुणवंत जैन: सोनासण
प्रश्न:– मारे मोक्ष जवुं छे पण आ संसारथी छूटातुं नथी, तो शुं करवुं?
उत्तर:– भाई, मारे पण तमारी जेवुं ज छे; आपणे मोक्षनो उपाय शरू करी
दईए एटले झट संसारथी छूटी जईशुं.
नवीन दामोदर मोदी: अमदावाद
प्रश्न:– जगतमां जेटला अजीव पदार्थो छे ते बधाने पुद्गल कहेवाय?
उत्तर:– ना; जे अजीव होय ने साथे रूपी पण होय–तेने पुद्गल कहेवाय.
नीलाबेन: अमदावाद
प्रश्न:– सामान्य रीते नियम छे के, सम्यग्द्रष्टि जीवने बीजा भवमां स्त्रीपर्याय दूर
थई जाय छे, परंतु ‘बे सखी’ पुस्तकमां अंजनासती पहेला भवमां पटराणीपदमां आर्जिका
पासेथी सम्यग्दर्शन प्राप्त करे छे–छतां पण बीजा भवमां शा माटे स्त्रीपर्याय रही?
उत्तर:– तमारो प्रश्न व्याजबी छे; आटला ध्यानपूर्वक वांचन करवा बदल
धन्यवाद! सम्यग्दर्शन सहित कोई जीव स्त्रीपर्यायमां अवतरे नहि ए नियम अखंड
राखीने उपरनी वातनुं समाधान नीचेना बे प्रकारे थई शके–