: ४८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
(१) पूर्वे पटराणीना भवमां अंजनाए जे सम्यग्दर्शन ग्रहण कर्युं ते देव–गुरु–
धर्मनी व्यवहार श्रद्धारूप व्यवहार सम्यग्दर्शन समजवुं; एने पण सम्यग्दर्शन कहेवानी
पद्धति पुराणोमां छे. अथवा–
(२) ते वखते सम्यग्दर्शन पामवा छतां पाछळथी तेनी विराधना थई गई
होय तोपण आम बने. (एवा पण दाखला बने छे.)
भरतकुमार बी. जैन: मोटामीया मांगरोळ (सभ्य नं. १३४)
प्रश्न:– सुख प्राप्त करवानो सरळ उपाय शुं?
उत्तर:– सरळ थईने आत्माने ओळखवो ते; कुंदकुंदस्वामीना शब्दोमां कहीए तो–
आमां सदा प्रीतिवंत बन,
आमां सदा संतुष्ठ ने
आनाथी बन तुं तृप्त,
तुजने सुख अहो! उत्तम थशे.
(समयसार गा. २०६)
बाळको, आ गाथा मोढे करी लेजो. जीवनमां सदा उपयोगी थशे.
वाडीभाई आर. शाह वढवाण: कस्तुरचंद पी. शाह जोरावरनगर
भगवानना कल्याणको तेमज बीजी माहितीओ प्रगट करवा संबंधमां आपनी
सूचना लक्षमां छे, ने योग्य समये तेम करीशुं. बधा गामोना जिनमंदिरोमां पूजन
कार्यक्रम एकसरखो राखवानुं शक््य नथी; क्या दिवसे कई पूजा करवी ते पूजन
करनारना भावअनुसार होय छे.
उषाबेन शाह, : मलाड सभ्य नं. १०७
आपे मोकलेल ‘रामचरित्र’ अने ‘ऋषभचरित्र’ बंने मळ्यां छे. आपना
धार्मिक अभ्यास अने साहित्यप्रेम माटे धन्यवाद. हमणां तो ऋषभदेव भगवानना दश
भवनुं वर्णन विस्तारथी आत्मधर्ममां आपणे आ अंकथी ज शरू करी रह्या छीए,
एटले तमारा लेखो लई नथी शकता.
कमलेश: राजकोट (सभ्य नं. १प२)
कमलेश भैया! तमे लखो छो के में जीवनुं चित्र दोर्युं छे! तो ते अहीं मोकलो तो
खबर पडे के केवुंक चीतरामण तमे कर्युं छे! सुखी थवा माटे शुं करवुं–एम तमे