Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ४९ :
पूछयुं तेनो जवाब मांगरोळना भरतभाईना जवाबमांथी जोई लेशो. पण भाई! जेने
‘जीव’ नुं चित्र करतां आवडे तेने सुखना उपायनी तो खबर पडे ज.
दीपक एम. जैन: सोनगढ तथा योगेश जैन: अमदावाद
तमे ज्ञान मेळववानी, भगवान थवानी ने मोक्षमां जवानी भावना लखी, तथा
ते भावना तमे रोज भावो छो–एम लख्युं–ते बदल शाबाशी! तमारी बेन पासेथी
आवी सरस भावना तमे शीख्या ते सारूं कर्युं. आ भावनाने जीवनमां भूलशो नहि.
भारतनी बधी बहेनो पोताना भाईने आवी उत्तम भावनाओ शीखवे तो केवुं सारूं!
नानपणथी ज बाळकोमां आवी उत्तम भावनाना संस्कार रेडाशे ते जीवनभर तेने
उपयोगी थशे.
अंजनाबेन जैन: सोनगढ
प्रश्न:– (१) मोक्ष पामवो होय तो शुं करवुं?
(२) सम्यग्दर्शन पामवुं होय तो शुं करवुं?
(३) आत्माने ओळखवो होय तो शुं करवुं?
(४) संसारमांथी मुक्त थवुं होय तो शुं करवुं?
उत्तर:– चारे प्रश्ननो एक जवाब “स्वसन्मुख परिणति.”–हवे वळी तमने
पांचमोप्रश्न ऊठे के “स्वसन्मुख परिणति करवा शुं करवुं?” तो कोई ज्ञानी पासे साक्षात्
जईने समजी लेजो.
बडी सादडीमां सुजानमलजी मोदीजी खास उत्साहथी बाळकोने धार्मिक
शिक्षण आपे छे. आपणा बालविभाग प्रत्ये खूब ज हर्ष व्यक्त करतां तेमणे पचीस
जेटला सभ्योनां नाम लखावी मोकल्या छे अने साथे हिंदी–गुजराती मिश्र भाषामां
लख्युं छे के ‘
आत्मधर्म’ का प्रकाश करके भारतभरमें कुंदकुंद–कहानकी
विजयपताका फहराई....मुमुक्षु अनमोल झवेरात–मणिमय रत्न खरीद रहे
है...बालविभागमें छोटा छोटा व मोटा मोटा विद्यार्थीओंको सभ्य बनाववानी योजना
करीने प्रश्नोतर वगेरेथी पोषण आपवानुं कर्युं ते वांचीने अमने बडी प्रसन्नता थई छे
(मोदीजीनी माफक गामेगामना वडीलो बाळकोने धार्मिक अभ्यास कराववा माटेनी
झुंबेश उपाडे तो जैनसमाजमां एक नवी ज जागृति आवी जाय)