Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ५० : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
“आत्मप्रेमी” अकलंकभाई: साबली (सभ्य नं. १४४)
प्रश्न:– (१) आत्मा एटले शुं?
(२) आत्मा केवडो हशे?
(३) आत्मा केम देखातो नथी?
(४) आत्माने देखवा माटे कई विद्या प्राप्त करवी पडे? प्रश्न सरस छे;
उत्तर:– (१) आत्मा एटले आपणे पोते.
(२) आत्मा तो बहु मोटो, सिद्धभगवान जेवडो छे.
(३) सम्यग्ज्ञानरूप विद्या नथी माटे आत्मा देखातो नथी.
(४) ज्ञानी पासेथी सम्यग्ज्ञान विद्या भणतां आत्माने देखी शकाय छे.
ने एवी विद्या भणीने आत्माने ओळखवो–ए आपणा जीवननुं कर्तव्य छे.
आकोलाथी (सभ्य नं. ७९) शैलाबेन लखे छे–
मने धर्मनो घणो रस छे, रोज हुं धर्मनो अभ्यास करुं छुं.–बेन! तमने
धन्यवाद! तमारी जेम आपणा बधा भाई–बेनो नानपणथी ज धर्ममां रस ल्ये ने
धर्मनो अभ्यास करे ते माटे ज आपणो ‘बालविभाग’ छे. घणा वडीलो पण
उत्साहपूर्वक बालविभागना विकासमां साथ आपी रह्या छे, ते हर्षनी वात छे.
तमारो प्रश्न:– मिथ्यात्व एटले शुं?
उत्तर:– मिथ्यात्व एटले जीवने घणुं ज दुःख आपनार तेनो मोटो शत्रु:
सम्यक्त्वनी साथे भाईबंधी करतां ते मिथ्यात्वनो नाश थाय छे. समकित समान मित्र
नथी ने मिथ्यात्व समान शत्रु नथी. माटे सम्यक्त्वरूपी मित्रनी भाईबंधी करवी.
चेतनाबेन जैन: सोनगढ
प्रश्न:– चैतन्य द्रव्यमां अनंत गुणरत्नोना दरिया ऊछळे छे तो ते कई द्रष्टिथी
देखाय?
उत्तर:– अंतरनी ज्ञानद्रष्टिथी देखाय; पोते ज पोताने देखवा माटे जुदुं साधन
होतुं नथी.
प्रश्न:– मारा आत्मानी चेतना, अने मारुं नाम ‘चेतना’ ते बेने केटलो संबंध?
उत्तर:– पहेली चेतना चेतन, ने बीजी ‘चेतना’ जड; ए बंनेनो एकबीजामां
अभाव होवाछतां मात्र संयोगसंबंध छे, अथवा वाच्य–वाचक संबंध छे.