Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ५१ :
मीनाबेन जैन सोनगढ
प्रश्न:– (१–२) संसारी जीव दुःखी केम छे? तेनाथी केम छूटे?
उत्तर:– परनी रुचि करे छे माटे दुःखी छे; आत्मानी रुचि करे तो दुःखथी छूटे.
प्रश्न:– (३) आत्मानी रुचि केम थाय?
आत्मस्वरूप जेणे अनुभव्युं छे एवा सन्तोने ओळखीने तेमनी सेवा
करवाथी आत्मरुचि थाय.
प्रश्न:– (४) सिद्ध भगवाननुं स्वरूप केम देखाय?
आत्मरुचि करीने निजस्वरूपने देखतां सिद्धनुं स्वरूप देखाय.
सुमतिबेन जैन: सोनगढ
प्रश्न:– तीर्थंकर प्रकृति बांधनार महान आत्माथी भक्तोने लाभ थाय ने?
उत्तर:– ते आत्माने पोते ओळखे अने तेमना जेवी आराधना पोते प्रगट करे
तो जरूर लाभ थाय.
शरदकुमार जैन उज्जैन
प्रश्नः– आत्माकी प्राप्तिका सुगम उपाय क्या है?
उत्तर:– जगत संबंधी कोलाहल छोडीने, ज्ञानी कहे छे ते रीते अंतरमां छमास
सुधी आत्मस्वभावनो अभ्यास करतां जरूर आत्मप्राप्ति थाय छे. चालो, आ क्षणथी
ज ए प्रयत्न शरू करी दईए.–तो छ मास पण नहि लागे.
बिपिन एन. जैन: हिंमतनगर (सभ्य नं. ३८)
बाल विभागमां प्रश्न तरीके आपे गणितनो कोयडो मोकल्यो; तेमां शेठनो एक
रूा. खोवायो छे ते शोधी आपवानुं पूछयुं; शेठनो रूपियो तो शेठनी पासे ज छे; परंतु
भाईश्री, आपणो बालविभाग कांई शेठनो रूपियो शोधवा माटे नथी. आपणो
बालविभाग तो आत्माने शोधवा माटे छे. आत्माने शोधवामां उपयोगी थाय एवुं
लखाण मोकलो. एकला गणितने लगता प्रश्नो बालविभाग माटे उपयोगी नथी; वळी
बालविभागना बधा सभ्यो कांई गणित भणेला नथी, घणाय बाळको तो हजी साव
नाना छे.