Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ५२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
सभ्य नं. (३१) ने मालुम थाय के,
आपे बंधनां निमित्तकारण वगेरे संबंधी बे प्रश्नो पूछया; परंतु भाईश्री!
आपणा बालविभागना तद्न सहेला त्रण प्रश्नोना उत्तरमां “जीव कोने कहेवो” ते
संबंधी पण तमारी व्याख्या बराबर नथी; माटे थोडो वखत आप बालविभागनो
चीवटपूर्वक अभ्यास करो, ने पछी आप सरस मजाना प्रश्नो लखी मोकलजो. (अने
बंधना निमित्तनी तपास करवा करतां प्रथम मोक्षना साधननी शोध करशो तो वधु
लाभ थशे.)
घनश्यामकुमार जैन, लातुर
प्रश्न:– विज्ञानयुगना लोको माने छे के चंद्रलोकमां कंई ज नथी, परंतु जैनधर्मना
लोको माने छे के त्यां देवो वसे छे, तो आमां साचुं शुं
उत्तर:– जैनधर्म कहे छे ते साचुं. आधुनिक विज्ञान अपूर्ण छे अने ते पोते ज
स्वीकारे छे के अमारो अभिप्राय ए छेवटनो अभिप्राय नथी, नवी नवी शोध थतां
तेनो अभिप्राय बदल्या करे छे. जैन सिद्धांतनुं कथन ए सर्वज्ञदेवे जाणेलुं छे. चंद्रलोकमां
पहोंचवा बाबत पूछयुं तो जणाववानुं के, आत्मानुं ज्ञान कर्या विना शुभ भाव करीने
जे जीव ज्योतिषी देवनुं आयुष बांधे ते जीव जरूर चंद्रलोकमां पहोंची शके. अने त्यां
पहोंचतां तेने सेकंडथी पण घणो ओछो समय लागे. त्यां सरस मजाना जिनमंदिरो
वगेरे छे. परंतु एटलु्रं ध्यान राखजो के जे मनुष्य सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्मा छे ते कदी
चंद्रलोकमां जता नथी. (वळी तमने जाणीने आश्चर्य थशे के आ विश्वमां चंद्र एक ज
नथी, पण असंख्याता चंद्र छे. अत्यारना विज्ञानीओ माने छे तेना करतां विश्व घणुं
घणुं मोटुं छे.)
जयश्री बहेन, रांची
तमारो प्रश्न घणा दिवसथी आवेल; आधुनिक विज्ञान संबंधमां अमने विशेष
माहिती न होवाथी तेना उत्तर संबंधी विशेष स्पष्टीकरण मेळववा माटे ते पत्र मुंबई
मोकलेल, परंतु ते पत्र तथा तेनो उत्तर विलंबथी प्राप्त थयेल छे. तेथी ते प्रश्न अने
उत्तर आगामी अंकमां आपीशुं. केमके तेनी साथे केटलाक चित्रो पण आपवा पडशे.
बेंगलोरनां भारतीबेन (सभ्य नं. १३२) लखे छे के मने बालविभाग बहु
गमे छे, मने गुरुदेव बहु गमे छे; ने मारे भगवान थवुं छे तो शुं करवुं? बेन! झट झट