Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ५३ :
मोटा थई, सोनगढ आवी, धर्मात्मानो सत्संग करी, आत्मज्ञान प्राप्त करी, स्त्रीपर्याय
छेदी, देवलोकनो अवतार पूरो करी, उत्तम मनुष्य थई, आराधनानी उग्रता करी,
रत्नत्रयधारी मुनि थई, श्रपकश्रेणी मांडीने केवळज्ञान प्रगट करो.–ओछामां ओछुं
आटलुं करो त्यारे भगवान थवाशे–तो हवे आमांथी एक पछी एक वस्तु जल्दी करवा
मांडो.
* बाल बंधुओ,
तमने सौने “दर्शनकथा” नामनुं भेटपुस्तक मोकल्युं छे. वैशाख सुद बीज
सुधीमां जेटला सभ्यो थया ते बधायने पुस्तक भेट मोकल्युं छे; तथा बधायना नाम
पण आ आत्मधर्ममां आवी गया छे. आम छतां–
(१) जो तमे तमारुं नाम बालविभागना सभ्य तरीके मोकल्युं होय ने हजी
सुधी तमारुं नाम छपायुं न होय तो फरी लखी मोकलो. (एटले तमारुं नाम छापीशुं ने
भेटपुस्तक पण मोकलीशुं.)
(२) तमारुं नाम छपायुं होय पण भेटपुस्तक न मळ्‌युं होय तो पहेली तारीख
पछी अमने जणावो. (सभ्य नंबर सहित पूरुं सरनामुं लखो.)
(३) तमे हजी सुधी सभ्य न थया हो ने हवे थवा मांगता हो तो थई शकाय
छे. (हवे ‘दर्शनकथा’ नां भेटपुस्तक सीलकमां नथी; कोई नवुं भेटपुस्तक बहार पडशे
त्यारे बधाने मोकलीशुं.)
सरनामुं
संपादक: “आत्मधर्म बाल–विभाग
सोनगढ (सौराष्ट्र)
‘दर्शनकथा’ नुं भेटपुस्तक वांचीने तमे पण हररोज जिनेन्द्रभगवाननां दर्शन
करवानी टेव पाडजो....जीवनमां जिनेन्द्रभगवानने कदी भूलशो. मा तमारा मित्रोनेय
ए वार्ता वंचावजो.
जयेश जैन अमदावाद (सभ्य नं. ३७२)
तमारुं उखाणुं मळ्‌युं, ते सारुं छे, परंतु ‘आत्मधर्म’ मां छापी न शकाय. नवीन
लखी मोकलजो.
अमदावादना सुधीरभाई लखे छे के,