Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
तेनुं फळ आवीने ऊभुं रहेशे. पण जीवनमां जेणे चैतन्यनी दरकार करी नथी, देहने ज
आत्मा मानीने विषयकषायो पोष्यां छे ते देह छूटवा टाणे कोना जोरे समाधि राखशे?
अज्ञानी तो असमाधिपणे देह छोडे छे. ज्ञानीए तो पहेलेथी ज देहने पोताथी जुदो
जाण्यो छे, एटले तेने चैतन्यलक्षे समाधिमरणे देह छूटे छे. एकवार पण आ रीते
चैतन्यलक्षे देह छोडे तो फरीने देह धारण करवो न पडे, एक बे भवमां ज मुक्ति थई जाय.
जुओ, ज्ञानीने के अज्ञानीने बंनेने देह तो छूटे ज छे, पण ज्ञानीए देहने जुदो
जाण्यो छे एटले तेने चैतन्यलक्षे देह छूटी जाय छे, तेने मरणनो भय नथी. अने
अज्ञानीए तो आत्माने देहरूपे ज मान्यो छे एटले तेने शरीरना लक्षे शरीर छूटी जाय
छे, त्यां ‘मारुं मरण थयुं’ एवो भय तेने छे. आत्मस्वभावना अनुभव वगर
मरणनो भय कदी टळे नहि.
लोको नीति वगेरे खातर पण शरीर जतुं करे छे. जेने मांसभक्षण वगेरेनो
त्याग छे एवो आर्यमाणस देह जाय तोपण मांसभक्षण करे नहि. कोई वार एवो
प्रसंग आवी पडे के कोई दुष्ट माणस तेने पकडीने कहे के तुं मारी साथे मांसभक्षण कर,
नहि तो हुं तारा शरीरना कटका करी नांखीश.–तो त्यां ते आर्यमाणस शुं करशे? शरीर
जतुं करशे पण मांसभक्षणना परिणाम नहि ज करे. ए ज प्रमाणे जे ब्रह्मचारी छे ते
शरीर जतां पण अब्रह्मचर्य नहि सेवे.–आ रीते हिंसा अब्रह्म वगेरे अनीतिने छोडवा
माटे देह पण जतो करे छे, अने त्यां देह जतो करवा छतां खेद थतो नथी. जो खेद थाय
तो तेणे खरेखर हिंसादिने छोडया नथी. हवे शरीर जतां पण खेद न थाय–एम क््यारे
बने? के शरीरथी भिन्न चैतन्यतत्त्वने लक्षमां लीधुं होय तो ज शरीरने जतुं करी शके.
शरीरने ज जे पोतानुं माने छे ते शरीरने खेद वगर जतुं करी शके ज नहि. आ रीते देह
अने आत्मानी भिन्नताना भेदज्ञानपूर्वक ज देहनी ममता छूटी शके छे ने
वीतरागभावरूप समाधि थाय छे. समाधि एटले वीतरागी आत्मशांति–तेनुं मूळ भेद–
ज्ञान छे. पर साथे एकत्वबुद्धिरूप ममता होय त्यां स्वमां एकाग्रतारूप समाधि होती
नथी. तेथी आचार्यदेवे भेदज्ञाननी भावना वारंवार घूंटावी छे.
पोते जेमां उपयोग जोडे तेमां एकाग्रता करी शके छे.
जुओ, राजा रावण जैनधर्मी हता; राम लक्ष्मण साथेनी लडाई वखते ज्यारे
बहुरूपिणी विद्या साधे छे त्यारे कोई आवीने तेने डगाववा मांगे छे; त्यां मायाजाळथी
एवो देखाव ऊभो करे छे के रावणनी सामे तेना पिताने मारी नांखे छे, ने रावणनी
माता रूदन करे छे के अरे बेटा रावण! आ तारा जेवो पुत्र बेठा छतां आ देव तारा
पिताने मारी नांखे!! वळी रावणना शरीर उपर मोटा सपों अने वीछी चडे छे....छतां
रावण ध्यानथी