Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
ज्ञान त्यां पण तेमने वर्ते छे; ने तेटली समाधि त्यां नरकमां पण तेने छे.
आ रीते अंतरात्मा पोताना आत्माने देहादिथी भिन्न जाणीने आत्मानी ज
भावना भावे छे; तेथी मृत्यु प्रसंगे पण आत्मभावनापूर्वक तेमने समाधि रहे छे.
ाा ६३–६६ाा
जगतमां सौथी सुन्दर नगरी
लंकाविजय पछी ज्यारे अयोध्यामां राम–
लक्ष्मणनो राज्याभिषेक थयो त्यारे सौने ईच्छित
पुरस्कार आप्यो; भरतने पण पूछयुं के बंधु! तारे कई
नगरी जोईए छे?
त्यारे वैरागी भरत कहे छे: बंधुवर! मारे
मोक्षनगरी जोईए छे; हुं मोक्षनगरीने मारी स्थायी
राजधानी बनाववा मांगुं छुं.
राम कहे छे–बंधु! त्यां तो पछी आपणे बंने
साथे जईशुं; परंतु अत्यारे हुं तने कोई सुंदर नगरी
आपवा ईच्छुं छुं.
भरत कहे छे–भाई! मोक्षनगरीए जवामां वळी
बीजानी सोबत केवी? त्यां तो जीव एकलो ज जाय छे,
बीजानो संग होतो नथी. अने ए मोक्षनगरी करतां
सुंदर बीजी कोई नगरी नथी के जेनी मने ईच्छा होय!
मोक्षनगरी ए ज साचुं शाश्वतधाम छे, एना सिवाय
मृत्युलोकनी बधी नगरी तो नाशवंत अने भाडुती घर
समान छे.–हुं तो मोक्षनगरीना ज राहे जवा ईच्छुं छुंं.
मोक्षनगरी ए ज जगतमां सौथी सुन्दर नगरी छे.
(‘सम्मति’ मराठीना आधारे)