आत्मशोधमां पोते न वर्ते, तो गुरुनो उपदेश तेने शुं करे?
मळ्युं; मारुं सुख तो मारामां छे, माटे मारा स्वरूपमां वळीने सुख शोधुं–आम
जेने स्वना सत्सुखनी अभिलाषा थई छे ने परसुखनी कल्पना छूटी गई छे–
एवो जीव वैरागी थईने स्वभावसुखने वारंवार भावे छे. ने ए रीते पोते
भावनावडे आत्मानुं परम ईष्ट–सुख प्राप्त करे छे. एटले परमार्थे ते पोते
पोतानो मार्गदर्शक गुरु छे.
अंतरनी भावनावडे ते उपायना प्रयत्नमां वर्ते, त्यारे आत्मा पोते पोताने
मोक्षना मार्गे दोरी जनार गुरु छे. पोते मार्ग न जाणे ने सुखना मार्गे पोताना
आत्माने पोते न लई जाय तो बीजा गुरु तेने शुं करवाना छे?
ते प्रयत्नथी ते मार्गने अनुसरशे त्यारे ते सुख पामशे; ने त्यारे बीजा गुरु
तेना निमित्त कहेवाशे. आ रीते परमार्थथी तो आत्मा पोते ज पोताने सुखमार्गे
दोरी जनारो गुरु छे. बीजा गुरु आने मोक्षमार्गे लई जाय–एम कहेवुं ते तो
व्यवहार छे, निमित्तमात्र छे–केवुं? के गतिमां धर्मास्तिकाय जेवुं.