Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : ११ :
मोक्षमंदिरनुं उद्घाटन करीने तेमां
धर्मात्मा शुद्धात्मारूप समयसारने स्थापे छे
(वैशाख वद आठमना प्रवचनमांथी)
* आत्मानुं हित थाय एवो ईष्ट उपदेश श्री गुरु आपे छे.
* जे जीव पोते आत्माना सत् सुखनो खरो अभिलाषी न थाय, ने अंर्त
आत्मशोधमां पोते न वर्ते, तो गुरुनो उपदेश तेने शुं करे?
* अरे, परमां सुख कल्पीने त्यां फांफां मारवामां अनंतकाळ गुमाव्यो, पण सुख न
मळ्‌युं; मारुं सुख तो मारामां छे, माटे मारा स्वरूपमां वळीने सुख शोधुं–आम
जेने स्वना सत्सुखनी अभिलाषा थई छे ने परसुखनी कल्पना छूटी गई छे–
एवो जीव वैरागी थईने स्वभावसुखने वारंवार भावे छे. ने ए रीते पोते
भावनावडे आत्मानुं परम ईष्ट–सुख प्राप्त करे छे. एटले परमार्थे ते पोते
पोतानो मार्गदर्शक गुरु छे.
* पहेलां तो जीव पोते मोक्षसुखनो अभिलाषी थाय, तेनो साचो उपाय जाणे, ने
अंतरनी भावनावडे ते उपायना प्रयत्नमां वर्ते, त्यारे आत्मा पोते पोताने
मोक्षना मार्गे दोरी जनार गुरु छे. पोते मार्ग न जाणे ने सुखना मार्गे पोताना
आत्माने पोते न लई जाय तो बीजा गुरु तेने शुं करवाना छे?
* गुरुए तो मार्गनो उपदेश आप्यो, पण ते मार्गने अनुसरशे कोण? जीव पोते
ते प्रयत्नथी ते मार्गने अनुसरशे त्यारे ते सुख पामशे; ने त्यारे बीजा गुरु
तेना निमित्त कहेवाशे. आ रीते परमार्थथी तो आत्मा पोते ज पोताने सुखमार्गे
दोरी जनारो गुरु छे. बीजा गुरु आने मोक्षमार्गे लई जाय–एम कहेवुं ते तो
व्यवहार छे, निमित्तमात्र छे–केवुं? के गतिमां धर्मास्तिकाय जेवुं.
* आत्माना सत्सुखनो जे अभिलाषी थाय तेने जगतसंबंधी बीजी अभिलाषा