Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : १९ :
उत्तर:– चारे गतिना जीवोमां मनुष्योनी संख्या सौथी ओछी छे. जगतना सर्व
जीवोमां मनुष्यो अनंतमा भागे छे. तथा क्षायिक सम्यक्त्व, तेमज पंचम गुणस्थान
करतां उपरनी बधी दशाओ, (मुनिपणुं, केवळज्ञान, तीर्थंकरपणुं वगेरे) पण
मनुष्यपणामां ज होय छे, आ कारणे मनुष्यपणुं उत्तम छे. आवुं दुर्लभ अने उत्तम
मनुष्यपणुं पामीने जो धर्मसाधना करवामां आवे तो ज तेनुं सफळपणुं छे, धर्म साधना
वगरना मनुष्यपणानी तो कोडी जेटलीये किंमत नथी. एटले मनुष्यभवने दुर्लभ कहीने
शास्त्रकारो एम कहे छे के हे जीव! आवुं मनुष्यपणुं तुं पाम्यो तो हवे तुं धर्मनी
आराधना कर. बाकी तो देव–नरक के तीर्यंचोमां पण घणा जीवो धर्मनी अमुक
आराधना करे छे. परंतु साक्षात् रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग मनुष्यपणा विना
संभवतो नथी.
प्रश्न:– दररोज शास्त्रनो अभ्यास करवाथी सम्यग्दर्शन आवी जाय के नहीं?
उत्तर:– शास्त्रोमां आत्मानुं स्वरूप जे प्रमाणे कह्युं छे ते प्रमाणे सत्समागमे
लक्षगत करीने, पछी शास्त्रमां कहेली अंतर्मुख विधिथी तेनो निरंतर अभ्यास करवाथी
सम्यग्दर्शन थाय छे. अंतरंग भावश्रुतना लक्षपूर्वक द्रव्यश्रुतनो अभ्यास करवानुं कह्युं
छे. शास्त्रोमां जे प्रमाणे कह्युं छे ते प्रमाणे आत्मामां जे अभ्यास करे तेने सम्यग्दर्शनादि
जरूर थाय.
* अतुल जैन (स. नं. ३८प) सुरतथी पूछे छे–
प्रश्न:– विचार केटली जातना? साचो विचार लाववा माटे सहेलो उपाय शुं?
उत्तर:– विचारना बे प्रकार: एक आत्मा संबंधी ने बीजा परसंबंधी; अथवा
एक धर्मसंबंधी विचार अने बीजा संसार संबंधी विचार; अथवा त्रीजी रीते–शुभ ने
अशुभ–एम बे प्रकारना विचार छे. उत्तम विचार एटले आत्माना हित संबंधी धार्मिक
विचार; हवे विचार हंमेशा ज्ञानअनुसार होय. ज्ञान साचुं होय तो विचार साचा आवे;
ज्ञानमां भूल होय तो विचारमांय भूल आवे. केमके विचार ए एक प्रकारे तो ज्ञाननुं ज
घोलन छे. साचा अने उत्तम विचारो लाववा माटे प्रथम सत्संगे तथा शास्त्रना
अभ्यासथी आत्मानुं साचुं स्वरूप तथा तेना स्वभावनो अपार महिमा लक्षगत करवो
जोईए. मुमुक्षु जीवने आत्म–विचारनी मुख्यता होय. ‘विचार’ माटे श्रीमद्
राजचंद्रजीए पण कह्युं छे के–
शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन स्वयं ज्योति सुखधाम;
बीजुं कहीए केटलुं? ‘कर विचार तो पाम.’