Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : २१ :
थवुं; आ रीते साध्य आत्मानी सिद्धि थाय छे एटले के आवा उद्यम वडे सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्र थाय छे, बीजी रीते थता नथी. (प्रश्नमां पहेलां ज्ञान, पछी चारित्र, ने
पछी दर्शन लखेल छे तेने बदले सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र–एवो क्रम
लखवानी टेव पाडजो.
* रोमेश जैन (स. नं. २१८) अमदावादथी लखे छे के “बालविभाग हंमेशा ज
रहे. तेमांथी नवीन जाणवानुं घणुं मळतुं रहे अने परिणामे सम्यग्दर्शन प्राप्त थाय
एवी शुभेच्छा छे. बालविभाग मने खूब गमे छे अने तेमां जवाब आपवानी पद्धत्ति
तो खूब सरस लागी छे.”
भाई, तमने बालविभाग खूब गमे छे, तो ‘बालविभाग’ ने तमे बधा खूब
गमो छो.–केम, अरसपरस बराबरने?
* गोंडलना नवा सभ्य दिलीपकुमार जैन लखे छे के–“आजे हुं अहींनी
(गोंडलनी) लाईब्रेरीमां पठन करवा गयो हतो, त्यां अचानक मारी नजर पू.
गुरुदेवनी तस्वीर पर पडी, अने आपनुं मासिक ‘आत्मधर्म’ ऊठाव्युं; वांचतां अजब
आनंद थयो. तेमांय बालविभाग वांचीने घणो ज प्रसन्न थयो छुं. तेथी हुं पण तेमां
सभ्य थवा ईच्छुं छुं. उगता बाळ–लेखकोने प्रोत्साहन मळे तथा तेना हृदयमां रहेला
धार्मिक अंकुरो विकसीत बने तेवी सजावट आत्मधर्ममां करवामां आवी छे. तेथी हुं
सभ्य थवा प्रेरायो छुं.
* सभ्य नं. ३८ (हिंमतनगर) पूछे छे–
प्रश्न:– आजना विज्ञाने मनुष्यनुं आखुं शरीर तपास्युं परंतु आत्मा देखायो
नहि, –तो आत्मा छे क््यां?
उत्तर:– एक माणसने सोनुं शोधवुं हतुं, तेणे कोलसाना ढगले ढगलामां तपास
करी, पण क््यांय सोनुं हाथ आव्युं नहि. भाई–एना जेवी तमारी वात छे. आत्माने
शोधवो होय तो ते जडना ढगलामांथी क््यांथी जडे? आत्मिक गुणोमां शोधे तो आत्मा
जडे. हवे बीजी वात: आजे जेने विज्ञान कहेवामां आवे छे तेना शोधखोळना साधनो
एटला स्थूळ छे (लोकोने भले सूक्ष्म लागे पण ज्ञानद्रष्टिए तो ते घणा स्थूळ छे) के
अत्यंत स्थूळ एवा जड पदार्थोनी शोधखोळमां ज ते काम करी शके छे; सूक्ष्म अरूपी
पदार्थोने ते शोधी शके नहि. आत्मा सूक्ष्म अरूपी