Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
प्रश्न:– सद्गुरुनो योग शक््य न बने त्यां सुधी शुं करवुं?
उत्तर:– सुपात्र जीवने प्रथम तो कोई ने कोई प्रकारे सत्पुरुषनो योग मळी ज
जाय छे. जुओने, भोगभूमिमां रहेला ऋषभदेव वगेरेना जीवोने सम्यक्त्वनी पात्रता
तैयार थई त्यां ठेठ विदेहक्षेत्रथी आकाशमार्गे बे वीतरागी मुनिवरोए आवीने तेमने
प्रतिबोध्या. (एक मास पछी आत्मधर्ममां तमे आ कथा वांचशो.) आवा तो घणाय
उदाहरणो छे. सद्गुरुनी प्राप्ति पछी कायम तेमना योगमां रहेवानुं न बनी शके तो
तेमने पोताना हृदयमां राखीने, तेमणे प्रतिबोधेला उपदेशनुं वैराग्यपूर्वक चिंतन करवुं,
आत्महितनी पुष्टि थाय एवा विचार तथा वांचन करवुं, साधर्मीनो संग तत्त्वचर्चा
वगेरे करवुं. साधर्मीनो संग ए मुख्य छे.
बालविभागमां गुरुदेवना प्रवचनमांथी बाळकोने समजाय तेवा लेखो
आपवानुं आपे सुचव्युं; तो आत्मधर्ममां गुरुदेवना प्रवचनोनुं दोहन अपाय ज छे,
अने ते माटे ज ‘आत्मधर्म’ छे. अनेक प्रकारना लेखोमां बाळकोने समजाय तेवा लेखो
पण होय छे, ते पसंद करीने वांची लेवा. बाकी तो बाळको सिवायनां बीजा हजारो
वांचको माटेनी सामग्री पण आपवी जोईए ने?
अमदावादथी नीलाबेन (स. नं. ११) लखे छे के–“अमारी परीक्षा पूर्ण थई,
पण जीवनमां तो धर्मनी परीक्षा ज काममां आववानी छे. अत्यारथी ज मुक्तिनी वातो
सांभळी हृदयमां कंईक खळभळाट थई जाय छे.....रजाओमां दर्शनप्रतिज्ञा, बे सखी, बे
राजकुमारो–वगेरे पुस्तको वांच्या; दर्शनप्रतिज्ञानी चोपडी वांच्या पछी हुं दररोज
जिनेन्द्र भगवानना दर्शन–पूजन करुं छुं अने गमे तेवी कसोटीमां पण दर्शन करवानुं न
भूलवुं–एवी प्रतिज्ञा में लीधी छे.”
–धार्मिक उत्साहमां खुब आगळ वधो एवी शुभेच्छा साथे तमने धन्यवाद!
नयनबाळा (स. नं. ११प) गढडाथी पूछे छे–चार तीर्थ कया?
उत्तर:– मुनि, अर्जिका, श्रावक ने श्राविका ए चार तीर्थं छे; तेओ रत्नत्रयरूपी
तीर्थंवडे संसारने तरवानो उद्यम करी रह्या छे तेथी तेओ तीर्थं छे, पूज्य छे. (आ
चारने चतुर्विंध संघ पण कहेवाय छे.)
भरतचक्रवर्ती छ खंडना अधिपति हता, ते छ खंड कया? –तेनी समजण आ
अंकमां जयश्रीबेन खाराना प्रश्ननो जे उत्तर अपायेल छे तेमांना चित्रो जोवाथी
ख्यालमां आवशे.