Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : २प :
तेमना छेल्ला दश अवतारनी कथा
(महापुराणना आधारे ले ब्र. ह. जैन: लेखांक बीजो)
[आत्मधर्ममां अंक २७१थी आपणे भगवान ऋषभदेवनुं पवित्र जीवनचरित्र
शरू कर्युं छे. पूर्वे दशमा भवे ते जीव महाबलराजाना भवमां जैनधर्मना संस्कार पाम्यो,
त्यांथी ललितांगदेव थयो. हजी ते जीव सम्यग्दर्शन नथी पाम्यो. सम्यग्दर्शन हजी एक
भव पछी पामशे.....ने एनी सम्यग्दर्शन पामवानी कथा वांचता आपणा रोमरोम
उल्लसी जशे. त्यार पहेलां संतजनोनी सेवा अने सत्संगना प्रतापे तेना परिणमननो
प्रवाह पलटवानी तैयारी चाली रही छे....एक लेख पछीना लेखमां ते महात्मा, संतोना
अपूर्वे प्रसादवडे सम्यग्दर्शनथी अलंकृत थशे.....त्यांसुधीमां आपणे पण तेमना जेवी
तैयारी करीए.....ने तेमना जीवनने अनुसरीए..... सं.
]
[३]
ऋषभदेवनो आठमो पूर्वभव: वज्रजंघराजा
आ जंबुद्वीपना पूर्व विदेहक्षेत्रमां पुष्कलावती नामनो मनोहर देश छे; तेनी
.
ललितांगदेवनी जे स्वयंप्रभा नामनी महादेवी हती ते पण स्वर्गनुं आयुष्य पूरुं
थतां छ महिना सुधी जिनपूजन करती थकी त्यांथी च्युत थई, अने विदेहक्षेत्रनी
पुंडरीकिणीनगरीना राजा वज्रदंत चक्रवर्तीनी पुत्री तरीके जन्मी; एनुं नाम
‘श्रीमती’
एकवार श्रीमती राजभवनमां हती ते वखते, तेना दादा श्री यशोधर मुनिराजने
केवळज्ञान थयुं अने ते केवळज्ञाननी पूजा करवा माटे देवोना विमानो त्यांथी पसार
थता हता, ते देवविमानोने जोतां ज तेने पोताना पूर्व भवनुं स्मरण थई आव्युं