Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : २७ :
चित्त चंचळ छे. वज्रदंतराजाए कह्युं: हे पुत्री! ते ललितांग, वज्रजंघ नामनो राजकुमार
थयो छे, आजथी त्रीजा दिवसे तने तेनो समागम थशे, अने ते ज तारो पति थशे.
आम कहीने राजा विदाय थयो.
श्रीमतीने एक तरफथी राजए उपरोक्त समाचार आप्या. अने बीजी तरफथी
तेनी पंडिता सखी पण चित्रपट संबंधी समाचार लईने आवी पहोंची तेणे कह्युं: हे
सखी! तारुं आ चित्रपट अनेक लोकोए जोयुं पण कोई तेना गूढार्थ समजी न शक््या;
छेवटे वज्रजंघकुमार त्यां आव्या अने आ चित्र जोतां ज तेने बधुं परिचित
लाग्युं....पूर्व भवना स्मरणथी क्षणभर ते विचारमां पडी गया....तेनी आंखोमांथी
आसुं झरवा लाग्या...अने ते मूर्छित थई गया. त्यारबाद अनेक उपायोथी सचेत थतां
तेणे बधी विगत कही, तथा पोतानुं बनावेलुं एक चित्रपट पण आप्युं. आम कहीने
पंडिताए वज्रजंघे आपेलुं चित्रपट श्रीमतीने आप्युं; ते चित्रपट जोतां ज, जेम भव्य
जीवो अध्यात्मशास्त्रने जोतां ज प्रमुदित थाय तेम, श्रीमती प्रमुदित थई, अने तेनी
आकुळता दूर थई.
एवामां राजा वज्रबाहु पोताना पुत्र वज्रजंघ सहित त्यां पहोंच्यो; त्यारे
चक्रवर्तीए पोताना बनेवी वज्रबाहुने सन्मानपूर्वक कह्युं के आजे आप पुत्र सहित मारे
घेर पधार्या तेथी मारुं मन अतिशय प्रसन्न थयुं छे; आपने मारा उपर असाधारण
प्रीति होय तो मारा घरमां जे कोई वस्तु आपने उत्तम लागती होय ते लई लो.
त्यारे वज्रबाहुए कह्युं: हे चक्रेश! आपना प्रसादथी मारे त्यां बधुं ज छे; छतां
आपनो प्रेमभर्यो आग्रह छे तो एटलुं मांगुं छुं के आपनी श्रीमती पुत्री मारा पुत्र
वज्रजंघने आपो. –चक्रवर्तीए प्रसन्नतापूर्वक ए वातनो स्वीकार करतां कह्युं –ए बंनेने
जन्मांतरनो स्नेह चाल्यो आवे छे तेथी तेमनो विवाहसंबंध योग्य छे.
आ रीते उत्सवपूर्वक वज्रजंघ अने श्रीमतीना विवाह थया, त्यारबाद पोतानो
धार्मिक उत्साह प्रगट करवा माटे वज्रजंघकुमार श्रीमतिसहित महापवित्र जिनमंदिरे
गयो, अने त्यां बिराजमान सुवर्णमय प्रतिमाओनो अभिषेक करीने अष्टद्रव्यथी पूजन
कर्युं, तथा मुनिवरोनां दर्शन कर्या. अने पछी पुंडरीकिणी नगरीमां पाछा आवीने
निवास कर्यो. त्यां घणा काळ सुधी चक्रवर्तीना भवनमां रह्या बाद विदाय लईने
वज्रजंघकुमार श्रीमती सहित पोताना उत्पलखेटकनगरमां आव्यो. क्रमक्रमथी तेने ९८
पुत्रो थया.
एक दिवस वज्रजंघना पिताने संसारथी वैराग्य उत्पन्न थतां, पोताना पुत्र
वज्रजंघनो राज्याभिषेक करीने पोते जिनदीक्षा अंगीकार